प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय: Difference between revisions
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<span class="GRef"> | <span class="GRef"> मूलाचार/213-215</span> <span class="PrakritGatha">मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरुहा । समुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ।213। कंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवालपुप्फफलं । गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्वकाया य ।215। सेवाल पणय केणग कवगो कुहणो य बादरा काया । सव्वेवि सुहमकाया सव्वत्थ जलत्थलागासे ।214। </span>= | ||
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<li class="HindiText"> मूलबीज अग्रबीज, पर्वबीज, कंदबीज, स्कंध बीज, बीजरुह और सम्मूर्छिम; ये सब वनस्पतियाँ प्रत्येक (अप्रतिष्ठित प्रत्येक) और अनंतकाय (सप्रतिष्ठित प्रत्येक) के भेद से दोनों प्रकार की होती हैं ।213। (<span class="GRef">पंचसंग्रह/प्राकृत 1/81 </span>) (<span class="GRef"> धवला 1/1, 1, 43/गाथा 153/273 </span>) (<span class="GRef"> तत्त्वसार/2/66 </span>); (<span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड/186/423 </span>); (<span class="GRef">पंचसंग्रह/संस्कृत/1/159</span>) । </li> | <li class="HindiText"> मूलबीज अग्रबीज, पर्वबीज, कंदबीज, स्कंध बीज, बीजरुह और सम्मूर्छिम; ये सब वनस्पतियाँ प्रत्येक (अप्रतिष्ठित प्रत्येक) और अनंतकाय (सप्रतिष्ठित प्रत्येक) के भेद से दोनों प्रकार की होती हैं ।213। (<span class="GRef">पंचसंग्रह/प्राकृत 1/81 </span>) (<span class="GRef"> धवला 1/1, 1, 43/गाथा 153/273 </span>) (<span class="GRef"> तत्त्वसार/2/66 </span>); (<span class="GRef"> गोम्मटसार जीवकांड/186/423 </span>); (<span class="GRef">पंचसंग्रह/संस्कृत/1/159</span>) । </li> |
Revision as of 17:22, 12 December 2022
- प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर परिचय
- प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित प्रत्येक के लक्षण
गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/186/423/9 प्रतिष्ठितं साधारणशरीरमाश्रितं प्रत्येक शरीरं येषां ते प्रतिष्ठितप्रत्येकशरीराः तैरनाश्रितशरीरा अप्रतिष्ठितप्रत्येकशरीराः स्युः । एवं प्रत्येकजीवानां निगोदशरीरैः प्रतिष्ठिताप्रतिष्ठितभेदेन द्विविधत्वं उदाहरणदर्शनपूर्वकं व्याख्यातं । = प्रतिष्ठित अर्थात् साधारण शरीर के द्वारा आश्रित किया गया है । प्रत्येक शरीर जिनका, उनकी प्रतिष्ठित प्रत्येक संज्ञा होती है और साधारण शरीरों के द्वारा आश्रित नहीं किया गया है शरीर जिनका उनको अप्रतिष्ठित प्रत्येक संज्ञा होती हैं । इस प्रकार सर्व प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव निगोद शरीरों के द्वारा प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित के भेद से दो-दो प्रकार के उदाहरणपूर्वक बता दिये गये ।
- प्रत्येक वनस्पति बादर ही होती है
धवला 1/1, 1, 41/269/3 प्रत्येक शरीर वनस्पतियों बादरा एव न सूक्ष्माः साधारणशरीरेष्विव उत्सर्गविधिबाधकापवाद-विधेरभावात् । = प्रत्येक शरीर वनस्पति जीव बादर ही होते हैं सूक्ष्म नहीं, क्योंकि जिस प्रकार साधारण शरीरों में उत्सर्ग विधि की बाधक अपवाद विधि पायी जाती है, उस प्रकार प्रत्येक वनस्पति में अपवाद विधि नहीं पायी जाती है अर्थात् उनमें सूक्ष्म भेद का सर्वथा अभाव है ।
- वनस्पति में ही साधारण जीव होते हैं पृथिवी आदि में नहीं
षट्खंडागम 14/5, 6/ सूत्र 120/225 तत्थ जे ते साहारणसरीरा ते णियमा वणप्फदिकाइया । अवसेसा पत्तेयसरीरा ।120। = उनमें (प्रत्येक व साधारण शरीर वालों में) जो साधारण शरीर जीव हैं वे नियम से वनस्पतिकायिक होते हैं । अवशेष (पृथिवीकायादि) जीव प्रत्येक शरीर हैं ।
- पृथिवी आदि व देव नारकी, तीर्थंकर आदि प्रत्येक शरीरी ही होते हैं
धवला 1/1, 1, 41/268/7 पृथिवीकायादिपंचनामपि प्रत्येकशरीरव्यपदेशस्तथा सति स्यादिति चेन्न, इष्टत्वात् । = प्रश्न - (जिनका पृथक्-पृथक् शरीर होता है, उन्हें प्रत्येकशरीर जीव कहते हैं) प्रत्येकशरीर का इस प्रकार लक्षण करने पर पृथिवीकायादि पाँचों शरीरों को भी प्रत्येक शरीर संज्ञा प्राप्त हो जायेगी? उत्तर - यह आशंका कोई आपत्तिजनक नहीं है, क्योंकि पृथिवीकाय आदि को प्रत्येकशरीर मानना इष्ट ही है ।
धवला 14/5, 6, 91/81/8 पुढवि-आउ-तेउ-वाउक्काइया देव णेरइया आहारसरीरा पमत्तसंजदा सजोगि-अजोगिकेवलिणी च पत्तेयसरीरावुच्चंतिः एदेसिं णिगोदजीवेहिं सह संबंधाभावादी । = पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक, देव, नारकी, आहारक शरीरी प्रमत्तसंयत, सयोगिकेवली और आयोगि ये जीव प्रत्येक शरीर वाले होते हैं, क्योंकि इनका निगोद जीवों से संबंध नहीं होता । ( गोम्मटसार जीवकांड/200/446 ) ।
- कंद मूल आदि सभी वनस्पतियाँ प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित होती हैं
मूलाचार/213-215 मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरुहा । समुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ।213। कंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवालपुप्फफलं । गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्वकाया य ।215। सेवाल पणय केणग कवगो कुहणो य बादरा काया । सव्वेवि सुहमकाया सव्वत्थ जलत्थलागासे ।214। =- मूलबीज अग्रबीज, पर्वबीज, कंदबीज, स्कंध बीज, बीजरुह और सम्मूर्छिम; ये सब वनस्पतियाँ प्रत्येक (अप्रतिष्ठित प्रत्येक) और अनंतकाय (सप्रतिष्ठित प्रत्येक) के भेद से दोनों प्रकार की होती हैं ।213। (पंचसंग्रह/प्राकृत 1/81 ) ( धवला 1/1, 1, 43/गाथा 153/273 ) ( तत्त्वसार/2/66 ); ( गोम्मटसार जीवकांड/186/423 ); (पंचसंग्रह/संस्कृत/1/159) ।
- सूरण आदि कंद, अदरख आदि मूल, छालि, स्कंध, पत्त, कौंपल, पुष्प, फल, गुच्छा, करंजा आदि गुल्म, वेल तिनका और बेंत आदि ये सम्मूर्छन प्रत्येक अथवा अनंतकायिक हैं ।214।
- जल की काई, ईंट आदि की काई, कूड़े से उत्पन्न हरा नीला रूप, जटाकार, आहार कांजी आदि से उत्पन्न काई ये सब बादरकाय जानने । जल, स्थल, आकाश सब जगह सूक्ष्मकाय जीव भरे हुए जानना ।215।
- अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति स्कंध में भी संख्यात या असंख्यात जीव होते हैं
गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/186/423/13 अप्रतिष्ठितप्रत्येकवनस्पतिजीवशरीराणि यथासंभवं असंख्यातानि संख्यातानि वा भवंति । यावंति प्रत्येकशरीराणि तावंत एव प्रत्येक वनस्पतिजीवाः तत्र प्रतिशरीरं एकैकस्य जीवस्य प्रतिज्ञानात् । = एक स्कंध में अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीवों के शरीर यथासंभव असंख्यात वा संख्यात भी होते हैं । जितने वहाँ प्रत्येक शरीर है, उतने ही वहाँ प्रत्येक वनस्पति जीव जानने चाहिए । क्योंकि एक-एक शरीर के प्रति एक-एक ही जीव होने का नियम है ।
- प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति स्कंध में अनंत जीवों के शरीर की रचना विशेष
धवला 14/5, 6, 93/86/1 संपहि पुलवियाणं एत्थ सरूपपरूवणं कस्सामो । तं जहा-खंधो अंडरं आवासो पुलविया णिगोदशरीरमिदि पंच होंति । तत्थ बादरणिगोदाणमासयभूदोबहुएहि वक्खारएहि सहियो वलंजंतवाणियकच्छउडसमाणो मूलय-थूहल्लयादिववएसहरो खंधो णाम । ते च खंधा असंखेज्जलोगमेत्त; बादरणिगोदपदिट्ठिदाणमसंखेज्जलोगमेत्तम-संखुवलंभादो । तेसिं खंधाणं ववएसहरो तेसिं भवाणमवयवा वलंजुअकच्छउडपुव्वावरभागसमाणा अंडरं णाम । अंडरस्स अंतोट्ठिंयो कच्छउडंडरंतोट्ठियवक्क्खारसमाणो आवासो णाम । अंडराणि असंखेज्जलोगमेत्तणि । एक्केक्कम्हि अंडरे असंखेज्जलोगमेत्त आवासा होंति । आवासव्भंतरे संट्ठिदाओ कच्छउडंडरवक्खारंतीट्ठियाविसिवियाहि समाणाओ पुलवियाओ णाम । एक्केक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्तओ होंति । एक्केक्कम्हि एक्केक्किस्से पुलविचाए-असंखेज्जलोगमेत्तणि णिगोदसरीराणि ओरालियतेजाकम्मइय-पोग्गलोवायाणकाराणणि कच्छउडंडरवक्खारपुलवियाए अंतोट्ठिददव्वसमाणाणि पुध पुध अणंताणंतेंहि णिगोदजीवेहिं आउण्णाणि होंति । तिलोग-भरह-जणवय-णामपुरसमाणाणि खंधंडरावास पुलविसरीराणि त्ति वा घेत्तव्वं । = अब यहाँ पर पुलवियों के स्वरूप का कथन करते हैं - यथा-स्कंध, अंडर, आवास, पुलवि और निगोद शरीर ये पाँच होते हैं -- उनमें से जो बादर निगोदों का आश्रय भूत है, बहुत वक्खारों से युक्त हैं तथा वलंजेतवाणिय कच्छउड समान है ऐसे मूली, थूअर और आर्द्रक आदि संज्ञा को धारण करने वाला स्कंध कहलाता है, वे स्कंध असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं, क्योंकि बादर प्रतिष्ठित जीव असंख्यात लोक प्रमाण पाये जाते हैं ।
- जो उन स्कंधों के अवयव हैं और जो बलंजुअकच्छउड के पूर्वापर भाग के समान हैं उन्हें अंडर कहते हैं ।
- जो अंडर के भीतर स्थित हैं तथा कच्छउडअंडर के भीतर स्थित वक्खार के समान हैं उन्हें आवास कहते हैं । अंडर असंख्यात लोक प्रमाण होते हैं तथा एक अंडर में असंख्यात लोक प्रमाण आवास होते हैं ।
- जो आवास के भीतर स्थित हैं और जो कच्छउडअंडरवक्खार के भीतर स्थित पिशवियों के समान हैं उन्हें पुलवि कहते हैं । एक-एक आवास में वे असंख्यात लोक प्रमाण होती हैं तथा एक-एक आवास की अलग-अलग एक-एक पुलवि में असंख्यात लोक प्रमाण निगोद शरीर होते हैं जो कि औदारिक, तैजस और कार्मण पुद्गलों के उपादान कारण होते हैं और जो कच्छउडअंडरवक्खारपुलवि के भीतर स्थित द्रव्यों के समान अलग-अलग अनंतानंत निगोद जीवों से आपूर्ण होते हैं ।
- अथवा तीन लोक, भरत, जनपद, ग्राम और पुर के समान स्कंध, अंडर, आवास, पुलवि और शरीर होते हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । ( गोम्मटसार जीवकांड/194-195/434, 436 ) ।
- प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित प्रत्येक के लक्षण