प्रवचन: Difference between revisions
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ध. | ध. 1/1,1,1/20/7<span class="PrakritText"> आगमो सिद्धंतो पवयणमिदि एयट्ठो ।</span> = <span class="HindiText">आगम, सिद्धान्त और प्रवचन, ये शब्द एकार्थवाची हैं ।</span><br /> | ||
ध. | ध. 8/3,41/90/1<span class="PrakritText"> सिद्धंतो बारहंगाणि पवयणं, प्रकृष्टं प्रकृष्टस्य, वचनं प्रवचनमिति व्युत्पत्तेः । ... पवयणं सिद्धंतो बारहंगाइ, तत्थ भवा देस-महव्वइणो असंजदसम्माइट्ठिणो च पवयणा ।</span> = <span class="HindiText">सिद्धान्त या बारह अंगों का नाम प्रवचन हैं, क्योंकि, ‘प्रकृष्ट वचन प्रवचन, या प्रकृष्ट (सर्वज्ञ) के वचन प्रवचन हैं, ऐसी व्युत्पत्ति है । ... सिद्धान्त या बारह अंगों का नाम प्रवचन है, तो इसमें होने वाले देशव्रती, महाव्रती और असंयत सम्यग्दृष्टि प्रवचन कहे जाते हैं . (चा.सा./56/4)।</span><br /> | ||
ध. | ध. 13/5,5,50/283/6 <span class="SanskritText">प्रकर्षेण कुतीर्थ्यानालीढतया उच्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनेनेति प्रवचनं वर्णपङ्क्त्यात्मकं द्वादशाङ्गम् । अथवा, प्रमाणाद्यविरोधेन उच्यतेऽर्थोऽनेन करणभूतेनेति प्रवचनं द्वादशाङ्गं भावश्रुतम् ।</span> = <span class="HindiText">प्रकर्ष से अर्थात् कुतीर्थ्यों के द्वारा नहीं स्पर्श किये जाने स्वरूप से जीवादि पदार्थों का निरूपण करता है, इसलिए वर्णपंक्त्यात्मक द्वादशांग को प्रवचन कहते हैं । (भ.आ.वि./32/121/22) अथवा कारणभूत इस ज्ञान के द्वारा प्रमाण आदि के अविरोध रूप से जीवादि अर्थ कहे जाते हैं, इसलिए द्वादशांग भावश्रुतको प्रवचन कहते हैं ।</span><br /> | ||
भ.आ./वि./ | भ.आ./वि./46/154/22 <span class="PrakritText">रत्नत्रयं प्रवचनशब्देनोच्यते । तथा चोक्तम्- णाणदंसणचरित्तमेगं पवयणमिति । </span>= <span class="HindiText">प्रवचन का अर्थ यहाँ रत्नत्रय है ‘रत्नत्रयको प्रवचन कहते हैं’, आगम के ऐसे वाक्य से भी यह सिद्ध होता है । (भ.आ./वि./1185/1171/14) ।</span><br /> | ||
गो.जी./जी.प्र./ | गो.जी./जी.प्र./18/42/17 <span class="SanskritText">प्रकृष्टं वचनं यस्यासौ प्रवचनः आप्तः, प्रकृष्टस्य वचनं प्रवचनं-परमागमः, प्रकृष्टमुच्यते - प्रमाणेन अभिधीयते इति प्रवचनपदार्थः, इति निरुक्त्या प्रवचनशब्देन तत्त्रयस्याभिधानात् ।</span> = <span class="HindiText">प्रकृष्ट हैं वचन जिसके ऐसे आप्त प्रचवन कहलाते हैं, अथवा प्रकृष्ट अर्थात् उस आप्त के वचनरूप परमागम को प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रकृष्ट अर्थात् प्रमाण के द्वारा जिनका निरूपण किया जाता है ऐसे पदार्थ प्रवचन हैं । इस प्रकार निरुक्ति के द्वारा प्रवचन के आप्त, आगम और पदार्थ ये तीन अर्थ होते हैं ।<br /> | ||
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मू.आ./ | मू.आ./297 <span class="PrakritGatha">प्रणिधाणजोगजुत्तो पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु । स चरित्ताचारो अट्ठविधो होइ णायव्वो ।297।</span> = <span class="HindiText">आठ प्रवचन माता से आठ भेद चारित्र के होते हैं - परिणाम के संयोग से पाँच समिति, तीन गुप्तियों में न्यायरूप प्रवृत्ति वह आठ भेद वाला चारित्राचार है ऐसा जानना ।297। </span><br /> | ||
भ.आ./वि./ | भ.आ./वि./1185/1171/14 <span class="SanskritText">एवं पञ्च समितय: तिस्रो गुप्तयश्च प्रवचनमातृकाः ।</span> = <span class="HindiText">तीन गुप्ति और पाँच समितियों को प्रवचनमाता कहते हैं । <br /> | ||
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भ.आ./मू./ | भ.आ./मू./1205 <span class="PrakritGatha">एदाओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरित्तं । रक्खंति सदा सुणिओ मादा पुत्तं व पयदाओ ।1205।</span> = <span class="HindiText">ये अष्ट प्रवचनमाता मुनि के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की सदा ऐसे रक्षा करती हैं जैसे कि पुत्र का हित करने में सावधान माता अपायों से उसको बचाती है ।1205। (मू.आ./336) (भ.आ./वि./1185/1171/5) ।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong> मोक्षमार्ग में अष्ट प्रवचन माता का ज्ञान ही पर्याप्त है।</strong> - | <li><span class="HindiText"><strong> मोक्षमार्ग में अष्ट प्रवचन माता का ज्ञान ही पर्याप्त है।</strong> - देखें [[ ध्याता#1 | ध्याता - 1]]; श्रुतकेवली /2/3</span></li> | ||
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Revision as of 21:44, 5 July 2020
- पिशाच जातीय व्यन्तर देवों का भेद - देखें पिशाच । 1
- श्रुतज्ञान का अपरनाम - देखें श्रुतज्ञान - I.2 .1 ।
प्रवचन -
- सामान्य निर्देश
ध. 1/1,1,1/20/7 आगमो सिद्धंतो पवयणमिदि एयट्ठो । = आगम, सिद्धान्त और प्रवचन, ये शब्द एकार्थवाची हैं ।
ध. 8/3,41/90/1 सिद्धंतो बारहंगाणि पवयणं, प्रकृष्टं प्रकृष्टस्य, वचनं प्रवचनमिति व्युत्पत्तेः । ... पवयणं सिद्धंतो बारहंगाइ, तत्थ भवा देस-महव्वइणो असंजदसम्माइट्ठिणो च पवयणा । = सिद्धान्त या बारह अंगों का नाम प्रवचन हैं, क्योंकि, ‘प्रकृष्ट वचन प्रवचन, या प्रकृष्ट (सर्वज्ञ) के वचन प्रवचन हैं, ऐसी व्युत्पत्ति है । ... सिद्धान्त या बारह अंगों का नाम प्रवचन है, तो इसमें होने वाले देशव्रती, महाव्रती और असंयत सम्यग्दृष्टि प्रवचन कहे जाते हैं . (चा.सा./56/4)।
ध. 13/5,5,50/283/6 प्रकर्षेण कुतीर्थ्यानालीढतया उच्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनेनेति प्रवचनं वर्णपङ्क्त्यात्मकं द्वादशाङ्गम् । अथवा, प्रमाणाद्यविरोधेन उच्यतेऽर्थोऽनेन करणभूतेनेति प्रवचनं द्वादशाङ्गं भावश्रुतम् । = प्रकर्ष से अर्थात् कुतीर्थ्यों के द्वारा नहीं स्पर्श किये जाने स्वरूप से जीवादि पदार्थों का निरूपण करता है, इसलिए वर्णपंक्त्यात्मक द्वादशांग को प्रवचन कहते हैं । (भ.आ.वि./32/121/22) अथवा कारणभूत इस ज्ञान के द्वारा प्रमाण आदि के अविरोध रूप से जीवादि अर्थ कहे जाते हैं, इसलिए द्वादशांग भावश्रुतको प्रवचन कहते हैं ।
भ.आ./वि./46/154/22 रत्नत्रयं प्रवचनशब्देनोच्यते । तथा चोक्तम्- णाणदंसणचरित्तमेगं पवयणमिति । = प्रवचन का अर्थ यहाँ रत्नत्रय है ‘रत्नत्रयको प्रवचन कहते हैं’, आगम के ऐसे वाक्य से भी यह सिद्ध होता है । (भ.आ./वि./1185/1171/14) ।
गो.जी./जी.प्र./18/42/17 प्रकृष्टं वचनं यस्यासौ प्रवचनः आप्तः, प्रकृष्टस्य वचनं प्रवचनं-परमागमः, प्रकृष्टमुच्यते - प्रमाणेन अभिधीयते इति प्रवचनपदार्थः, इति निरुक्त्या प्रवचनशब्देन तत्त्रयस्याभिधानात् । = प्रकृष्ट हैं वचन जिसके ऐसे आप्त प्रचवन कहलाते हैं, अथवा प्रकृष्ट अर्थात् उस आप्त के वचनरूप परमागम को प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रकृष्ट अर्थात् प्रमाण के द्वारा जिनका निरूपण किया जाता है ऐसे पदार्थ प्रवचन हैं । इस प्रकार निरुक्ति के द्वारा प्रवचन के आप्त, आगम और पदार्थ ये तीन अर्थ होते हैं ।
- अष्ट प्रवचनमाता का लक्षण
मू.आ./297 प्रणिधाणजोगजुत्तो पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु । स चरित्ताचारो अट्ठविधो होइ णायव्वो ।297। = आठ प्रवचन माता से आठ भेद चारित्र के होते हैं - परिणाम के संयोग से पाँच समिति, तीन गुप्तियों में न्यायरूप प्रवृत्ति वह आठ भेद वाला चारित्राचार है ऐसा जानना ।297।
भ.आ./वि./1185/1171/14 एवं पञ्च समितय: तिस्रो गुप्तयश्च प्रवचनमातृकाः । = तीन गुप्ति और पाँच समितियों को प्रवचनमाता कहते हैं ।
- इन्हें माता कहने का कारण
भ.आ./मू./1205 एदाओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरित्तं । रक्खंति सदा सुणिओ मादा पुत्तं व पयदाओ ।1205। = ये अष्ट प्रवचनमाता मुनि के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की सदा ऐसे रक्षा करती हैं जैसे कि पुत्र का हित करने में सावधान माता अपायों से उसको बचाती है ।1205। (मू.आ./336) (भ.आ./वि./1185/1171/5) ।
- मोक्षमार्ग में अष्ट प्रवचन माता का ज्ञान ही पर्याप्त है। - देखें ध्याता - 1; श्रुतकेवली /2/3