भव: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 10/4,2,4,8/35/5 </span><span class="SanskritText">उत्पत्तिवारा भवाः। </span>= <span class="HindiText">उत्पत्ति के वारों का नाम भव है।</span><br /> | <span class="GRef"> धवला 10/4,2,4,8/35/5 </span><span class="SanskritText">उत्पत्तिवारा भवाः। </span>= <span class="HindiText">उत्पत्ति के वारों का नाम भव है।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 15/5/5/14 </span><span class="PrakritText">उप्पण्णवढमयप्पहुडि जाव चरिमसमओ त्ति जो अवत्थाविसेसो सो भवो णाम। </span>= <span class="HindiText">उत्पन्न होने के प्रथम समय से लेकर अंतिम समय तक जो विशेष अवस्था रहती है, उसे भव कहते हैं।</span><br /> | <span class="GRef"> धवला 15/5/5/14 </span><span class="PrakritText">उप्पण्णवढमयप्पहुडि जाव चरिमसमओ त्ति जो अवत्थाविसेसो सो भवो णाम। </span>= <span class="HindiText">उत्पन्न होने के प्रथम समय से लेकर अंतिम समय तक जो विशेष अवस्था रहती है, उसे भव कहते हैं।</span><br /> |
Revision as of 22:27, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भव
सर्वार्थसिद्धि/1/21/125/6 आयुर्नामकर्मोदयनिमित्त आत्मनः पर्यायो भवः। = आयुनामकर्म के उदय का निमित्त पाकर जो जीव की पर्याय होती है उसे भव कहते हैं। ( राजवार्तिक/1/2179/6 )।
धवला 10/4,2,4,8/35/5 उत्पत्तिवारा भवाः। = उत्पत्ति के वारों का नाम भव है।
धवला 15/5/5/14 उप्पण्णवढमयप्पहुडि जाव चरिमसमओ त्ति जो अवत्थाविसेसो सो भवो णाम। = उत्पन्न होने के प्रथम समय से लेकर अंतिम समय तक जो विशेष अवस्था रहती है, उसे भव कहते हैं।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/25/18 पर उद्धृत–देहो भवोत्ति उवुच्चदि ...। = देह को भव कहते हैं। - क्षुल्लक भव का लक्षण
धवला 14/5,6,646/504/2 आउअबंधे संते जो उवरि विस्समणकालो सव्वजहण्णो तस्स खुद्दा भवग्गहणं ति सण्णा। सो त्तो उवरि होदि।... असंखेयद्धस्सुवरि खुद्धाभवगहणं त्ति वुत्ते। = आयु बंध के होने पर जो सबसे जघन्य विश्रमण काल है उसकी क्षुल्लक भव ग्रहण संज्ञा है। वह आयु बंधकाल के ऊपर होता है। ... असंक्षेपाद्धाके ऊपर (मृत्युपर्यंत) क्षुल्लक भव ग्रहण है। - अन्य संबंधित विषय
- सम्यग्दृष्टि को भव धारण की सीमा–देखें सम्यग्दर्शन - I.5।
- श्रावक को भव धारण की सीमा–देखें श्रावक - 2।
- एक अंतर्मुहूर्त में संभव क्षुद्रभवों का प्रमाण–देखें आयु - 7।
- नरक गति में पुनःपुनः भव धारण की सीमा–देखें जन्म - 6.10।
- लब्ध्यपर्याप्तकों में पुनः पुनः भव धारण की सीमा–देखें आयु - 7।
- सम्यग्दृष्टि को भव धारण की सीमा–देखें सम्यग्दर्शन - I.5।
पुराणकोष से
(1) अनागत ग्यारह रुद्रों में छठा रुद्र । हरिवंशपुराण 60. 571
(2) जंबूस्वामी का प्रमुख शिष्य । महापुराण 76.120
(3) चारों गतियों में भ्रमण करने वाले जीवों को वर्तमान शरीर त्यागने के बाद प्राप्त होने वाला आगामी दूसरा शरीर । हरिवंशपुराण 56. 47
(4) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.117