लोक विभाग
From जैनकोष
यह ग्रन्थ लोक के स्वरूप का वर्णन करता है। मूल ग्रन्थ प्राकृत गाथाबद्ध आ. सर्वनन्दि द्वारा ई. ४५८ में रचा गया था। पीछे आ. सिंहसूरि (ई. श. ११ के पश्चात्) द्वारा इसका संस्कृत रूपान्तर कर दिया गया। रूपान्तर ग्रन्थ ही उपलब्ध है मूल नहीं। इसमें ११ प्रकरण हैं और २००० श्लोक प्रमाण है ।