वरधर्म: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) एक मुनि । राजा सुमुख और वनमाला ने इन्हें आहार देकर पुण्यार्जन किया था । इन्हीं मुनिराज के चरणस्पर्श से वज्रमुष्टि की प्रिया मंगी विष रहित हुई थी । भरतक्षेत्र के मगध देश में स्थित शाल्मलिखण्ड ग्राम के निवासी जयदेव और देविला की पुत्री | <p id="1"> (1) एक मुनि । राजा सुमुख और वनमाला ने इन्हें आहार देकर पुण्यार्जन किया था । इन्हीं मुनिराज के चरणस्पर्श से वज्रमुष्टि की प्रिया मंगी विष रहित हुई थी । भरतक्षेत्र के मगध देश में स्थित शाल्मलिखण्ड ग्राम के निवासी जयदेव और देविला की पुत्री पद्मदेवी ने इन्हीं से अज्ञातफल न खाने का नियम लिया था । कुबेरमित्र भी इन्हीं से तप धारण कर ब्रह्मलोक के अन्त में लोकान्तिक देव हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 47.73-75, 71. 446-448, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 15.6-12, 33. 110-113, 60. 108-110 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक चारण ऋद्धिधारी मुनि । सुभानु ने अपने अन्य भाइयों के साथ इन्हीं से दीक्षा ली थी और जीवन्धर भी इनसे ही व्रत धारण कर व्रती हुए थे । महापुराण 62.73, 71. 243, 75.674-675 </p> | <p id="2">(2) एक चारण ऋद्धिधारी मुनि । सुभानु ने अपने अन्य भाइयों के साथ इन्हीं से दीक्षा ली थी और जीवन्धर भी इनसे ही व्रत धारण कर व्रती हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 62.73, 71. 243, 75.674-675 </span></p> | ||
Revision as of 21:46, 5 July 2020
(1) एक मुनि । राजा सुमुख और वनमाला ने इन्हें आहार देकर पुण्यार्जन किया था । इन्हीं मुनिराज के चरणस्पर्श से वज्रमुष्टि की प्रिया मंगी विष रहित हुई थी । भरतक्षेत्र के मगध देश में स्थित शाल्मलिखण्ड ग्राम के निवासी जयदेव और देविला की पुत्री पद्मदेवी ने इन्हीं से अज्ञातफल न खाने का नियम लिया था । कुबेरमित्र भी इन्हीं से तप धारण कर ब्रह्मलोक के अन्त में लोकान्तिक देव हुआ था । महापुराण 47.73-75, 71. 446-448, हरिवंशपुराण 15.6-12, 33. 110-113, 60. 108-110
(2) एक चारण ऋद्धिधारी मुनि । सुभानु ने अपने अन्य भाइयों के साथ इन्हीं से दीक्षा ली थी और जीवन्धर भी इनसे ही व्रत धारण कर व्रती हुए थे । महापुराण 62.73, 71. 243, 75.674-675