स्वयंबुद्ध
From जैनकोष
- इस सम्बन्धी विषय-देखें - बुद्ध।
- म.पु./सर्ग/श्लोक यह राजा महाबल (ऋषभदेव का पूर्व का नवमा भव) का मन्त्री था (४/१९१) इसने तीन मिथ्यादृष्टि मन्त्रियों द्वारा मिथ्यावादों की स्थापना करने पर उनका खण्डन कर आस्तिक्यभाव की स्थापना की (५/८६)। एक समय मेरु की वन्दनार्थ गया (५/१६१) वहाँ मुनियों से राजा की दसवें भव में मुक्ति जानकर हर्षित हुआ (५/१९८-२००)। आयु का अन्त जानकर राजा का समाधि पूर्वक मरण कराया। (५/२२५) अन्त में राजा के वियोग से दीक्षा ग्रहण कर ली। तथा समाधिपूर्वक स्वर्ग में रत्नचूल देव हुआ (९/१०६)।