हिंसानंद: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> रौद्रध्यान के चार भेदों में प्रथम भेद-हिंसा में आनंद मनाना जीवों को मारने और बांधने आदि की इच्छा रखना, उनके अंगउपांगों को छेदना, संताप देना, कठोरदंड देना आदि । ऐसे कार्यों को करने वाला पुरुष अपने आपका घात पहले करता है पीछे अन्य जीवों का घात करे या न करे । क्रूरता, शस्त्रधारण, हिंसाकथाभिरति ये रौद्रध्यान के चिह्न हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21.45-49, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 56. 19, 22 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> रौद्रध्यान के चार भेदों में प्रथम भेद-हिंसा में आनंद मनाना जीवों को मारने और बांधने आदि की इच्छा रखना, उनके अंगउपांगों को छेदना, संताप देना, कठोरदंड देना आदि । ऐसे कार्यों को करने वाला पुरुष अपने आपका घात पहले करता है पीछे अन्य जीवों का घात करे या न करे । क्रूरता, शस्त्रधारण, हिंसाकथाभिरति ये रौद्रध्यान के चिह्न हैं । <span class="GRef"> महापुराण 21.45-49, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_56#19|हरिवंशपुराण - 56.19]], 22 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:31, 27 November 2023
रौद्रध्यान के चार भेदों में प्रथम भेद-हिंसा में आनंद मनाना जीवों को मारने और बांधने आदि की इच्छा रखना, उनके अंगउपांगों को छेदना, संताप देना, कठोरदंड देना आदि । ऐसे कार्यों को करने वाला पुरुष अपने आपका घात पहले करता है पीछे अन्य जीवों का घात करे या न करे । क्रूरता, शस्त्रधारण, हिंसाकथाभिरति ये रौद्रध्यान के चिह्न हैं । महापुराण 21.45-49, हरिवंशपुराण - 56.19, 22