Category:Bhajan
From जैनकोष
अनुक्रमणिका के क्रम से विभिन्न कवियों के द्वारा रचित संपूर्ण भजन
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- न मानत यह जिय निपट अनारी
- नगर में होरी हो रही हो
- नरभव पाय फेरि दुख भरना
- नहिं ऐसो जनम बारंबार
- निज कारज काहे न सारै रे
- निज जतन करो गुन-रतननिको, पंचेन्द्रीविषय
- निजपुर में आज मची होरी
- निजहितकारज करना भाई!
- नित उठ ध्याऊँ, गुण गाऊँ, परम दिगम्बर साधु
- नित पीज्यौ धीधारी, जिनवानि
- निपट अयाना, तैं आपा नहीं जाना
- निपट गंवार बीरा! थारी बान बुरी परी रे, बरज्यो मानत नाहिं
- निरखत जिनचन्द्र-वदन
- निरखत सुख पायौ जिन मुखचन्द
- निरखी निरखी मनहर मूरत
- निरविकलप जोति प्रकाश रही
- नैननि को वान परी, दरसन की
प
- पद्मसद्म पद्मापद पद्मा
- परनति सब जीवनकी
- परम दिगम्बर यती, महागुण व्रती, करो निस्तारा
- परमगुरु बरसत ज्ञान झरी
- परमाथ पंथ सदा पकरौ
- पर्वराज पर्यूषण आया दस धर्मो की ले माला
- पल पल बीते उमरिया रूप जवानी जाती
- पायो जी सुख आतम लखकै
- पिया बिन कैसे खेलौं होरी
- पुलकन्त नयन चकोर पक्षी
- प्यारी लागै म्हाने जिन छवि थारी
- प्रभु गुन गाय रै, यह औसर फेर न पाय रे
- प्रभु तुम सुमरन ही में तारे
- प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं
- प्रभु थारी आज महिमा जानी
- प्रभु दर्शन कर जीवन की, भीड़ भगी मेरे कर्मन की
- प्रभु! तुम नैनन-गोचर नाहीं
- प्राणी लाल! छांडो मन चपलाई
- प्राणी लाल! धरम अगाऊ धारौ
- प्राणी! आतमरूप अनूप है, परतैं भिन्न त्रिकाल
- प्राणी! सोऽहं सोऽहं ध्याय हो
- प्रानी समकित ही शिवपंथा
- प्रेम अब त्यागहु पुद्गल का
भ
- भगवन्त भजन क्यों भूला रे
- भज ऋषिपति ऋषभेश
- भजन बिन यौं ही जनम गमायो
- भजो आतमदेव, रे जिय! भजो आतमदेव, लहो
- भली भई यह होरी आई, आये चेतनराय
- भलो चेत्यो वीर नर तू, भलो चेत्यो वीर
- भववनमें, नहीं भूलिये भाई!
- भवि कीजे हो आतमसँभार, राग दोष परिनाम डार
- भवि देखि छबी भगवान की
- भविन-सरोरूहसूर भूरिगुनपूरित अरहंता
- भाई काया तेरी दुखकी ढेरी
- भाई कौन कहै घर मेरा
- भाई धनि मुनि ध्यान-लगायके खरे हैं
- भाई! अब मैं ऐसा जाना
- भाई! कहा देख गरवाना रे
- भाई! ज्ञान बिना दुख पाया रे
- भाई! ज्ञानका राह दुहेला रे 1
- भाई! ज्ञानका राह सुहेला रे 2
- भाई! ज्ञानी सोई कहिये
- भाई! ब्रह्मज्ञान नहिं जाना रे
- भाखूँ हित तेरा, सुनि हो मन मेरा
- भाया थारी बावली जवानी चाली रे
- भावों में सरलता
- भैया! सो आतम जानो रे!
- भोगारां लोभीड़ा, नरभव खोयौ रे अज्ञान
- भ्रम्योजी भ्रम्यो, संसार महावन, सुख सो रमन्त
म
- मंगल आरती आतमराम । तनमंदिर मन उत्तम ठान
- मगन रहु रे! शुद्धातममें मगन रहु रे
- मत कीज्यौ जी यारी
- मत बिसरावो जिनजी
- मत राचो धीधारी
- मति भोगन राचौ जी
- मन महल में दो दो भाव जगे
- मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे
- मन हंस! हमारी लै शिक्षा हितकारी!
- मन! मेरे राग भाव निवार
- मनवचतन करि शुद्ध भजो जिन
- महिमा जिनमतकी
- महिमा है अगम जिनागमकी
- मान न कीजिये हो परवीन
- मानत क्यों नहिं रे
- मानुष जनम सफल भयो आज
- मानों मानों जी चेतन यह
- मिथ्या यह संसार है, झूठा यह संसार है रे
- मेघघटासम श्रीजिनवानी
- मेरा साँई तौ मोमैं नाहीं न्यारा
- मेरी मेरी करत जनम सब बीता
- मेरी सुध लीजै रिषभ स्वाम!
- मेरे कब ह्वै वा दिन की सुघरी
- मेरे मन कब ह्वै है बैराग
- मेरे मन सूवा, जिनपद पींजरे वसि, यार लाव न बार रे
- मेरो मन ऐसी खेलत होरी
- मैं आयौ, जिन शरन तिहारी
- मैं न जान्यो री! जीव ऐसी करैगो
- मैं निज आतम कब ध्याऊंगा
- मैं नूं भावैजी प्रभु चेतना, मैं नूं भावै जी
- मैं हरख्यौ निरख्यौ मुख तेरो
- मैं हूँ आतमराम
- मैंने देखा आतमराम
- मोहि कब ऐसा दिन आय है
- मोहिड़ा रे जिय!
- मोही जीव भरम तमतैं नहिं
- म्हांकै घट जिनधुनि अब प्रगटी
- म्हे तौ थांका चरणां लागां
र
ल
व
- विपतिमें धर धीर, रे नर! विपतिमें धर धीर
- विषयोंदा मद भानै, ऐसा है कोई वे
- वीतराग नाम सुमर, वीतराग नाम
- वे कोई अजब तमासा, देख्या बीच जहान वे, जोर तमासा सुपनेका-सा
- वे कोई निपट अनारी, देख्या आतमराम
- वे परमादी! तैं आतमराम न जान्यो
- वे प्राणी! सुज्ञानी, जिन जानी जिनवानी
- वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी
- वे साधौं जन गाई, कर करुना सुखदाई
श
स
- संसार महा अघसागर में
- संसारमें साता नाहीं वे
- सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय
- सन्त निरन्तर चिन्तत ऐसैं
- सफल है धन्य धन्य वा घरी
- सब जगको प्यारा, चेतनरूप निहारा
- सब विधि करन उतावला, सुमरनकौं सीरा
- सबसों छिमा छिमा कर जीव!
- सम आराम विहारी
- समझत क्यों नहिं वानी, अज्ञानी जन
- सम्यग्ज्ञान बिना, तेरो जनम अकारथ जाय
- सहज अबाध समाध धाम तहाँ
- सांची तो गंगा यह वीतरागवानी
- साधो! छांडो विषय विकारी । जातैं तोहि महा दुखकारी
- सारौ दिन निरफल खोयबौ करै छै
- सुधि लीज्यौ जी म्हारी, मोहि भवदुखदुखिया जानके
- सुन चेतन इक बात
- सुन जिन वैन श्रवन सुख पायौ
- सुन ज्ञानी प्राणी, श्री गुरु सीख सयानी
- सुनि ठगनी माया, तैं सब जग ठग खाया
- सुनि सुजान! पाँचों रिपु वश करि
- सुनो जिया ये सतगुरु की बातैं
- सुनो! जैनी लोगो, ज्ञानको पंथ कठिन है
- सुन्दर दशलक्षन वृष
- सुमर सदा मन आतमराम
- सुरनरसुखदाई, गिरनारि चलौ भाई
- सो गुरुदेव हमारा है साधो
- सो ज्ञाता मेरे मन माना, जिन निज-निज पर पर जाना
- सो मत सांचो है मन मेरे
- सोग न कीजे बावरे! मरें पीतम लोग
- सोहां दीव (शोभा देवें) साधु तेरी बातड़ियां
- सौ सौ बार हटक नहिं मानी
- स्वामी तेरा मुखड़ा है मन को लुभाना
ह
- हम आये हैं जिनभूप! तेरे दरसन को
- हम तो कबहुँ न निज घर आये
- हम तो कबहुँ न निजगुन भाये
- हम तो कबहूँ न हित उपजाये
- हम न किसीके कोई न हमारा, झूठा है जगका ब्योहारा
- हम लागे आतमरामसों
- हमकौं कछू भय ना रे
- हमारे ये दिन यों ही गये जी
- हमारो कारज ऐसे होय 2
- हमारो कारज कैसें होय 1
- हरी तेरी मति नर कौनें हरी
- हे जिन तेरे मैं शरणै आया
- हे जिन तेरो सुजस उजागर
- हे जिन मेरी, ऐसी बुधि कीजै
- हे नर, भ्रमनींद क्यों न छांडत दुखदाई
- हे मन तेरी को कुटेव यह
- हे हितवांछक प्रानी रे
- हो भैया मोरे! कहु कैसे सुख होय
- होरी खेलौंगी, घर आये चिदानंद कन्त