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- चारित्रपाहुड गाथा 36
- चारित्रपाहुड गाथा 37
- चारित्रपाहुड गाथा 38
- चारित्रपाहुड गाथा 39
- चारित्रपाहुड गाथा 4
- चारित्रपाहुड गाथा 40
- चारित्रपाहुड गाथा 41
- चारित्रपाहुड गाथा 42
- चारित्रपाहुड गाथा 43
- चारित्रपाहुड गाथा 44
- चारित्रपाहुड गाथा 45
- चारित्रपाहुड गाथा 5
- चारित्रपाहुड गाथा 6
- चारित्रपाहुड गाथा 7
- चारित्रपाहुड गाथा 8
- चारित्रपाहुड गाथा 9
- चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव
- चित चिंतकैं चिदेश कब
- चित्त! चेतनकी यह विरियां रे
- चिदरायगुन सुनो मुनो
- चिन्मूरत दृग्धारी की मोहे
- चेतन! तुम चेतो भाई, तीन जगत के नाथ
- चेतन! मान ले बात हमारी
- चेतन अब धरि सहजसमाधि
- चेतन कौन अनीति गही रे
- चेतन खेलै होरी
- चेतन तैं यौं ही भ्रम ठान्यो
- चेतन निज भ्रमतैं भ्रमत रहै
- चेतन प्राणी चेतिये हो,
- चेतन यह बुधि कौन सयानी
- चेतनजी! तुम जोरत हो धन, सो धन चलत नहीं तुम लार
- चौबीसौं को वंदना हमारी
- छांडत क्यौं नहिं रे
- छांडि दे या बुधि भोरी
- जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि
- जग में श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे
- जगत जन जूवा हारि चले
- जगत में सम्यक उत्तम भाई
- जगदानंदन जिन अभिनंदन
- जपि माला जिनवर नामकी
- जबतैं आनंदजननि दृष्टि परी माई
- जम आन अचानक दावैगा
- जय जय जग-भरम-तिमिर
- जय श्री ऋषभ जिनंदा! नाश तौ करो स्वामी मेरे दुखदंदा
- जयश्यामा
- जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल
- जाऊँ कहाँ तज शरन तिहारे
- जानके सुज्ञानी जैनवानी की सरधा लाइये
- जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी
- जानत क्यौं नहिं रे
- जानो धन्य सो धन्य सो धीर वीरा
- जिन के भजन में मगन रहु रे!
- जिन छवि तेरी यह
- जिन छवि लखत यह बुधि भयी
- जिन जपि जिन जपि, जिन जपि जीयरा
- जिन नाम सुमर मन! बावरे! कहा इत उत भटकै
- जिन रागद्वेष त्यागा वह सतगुरु हमारा
- जिन स्वपरहिताहित चीन्हा
- जिनबानी के सुनैसौं मिथ्यात मिटै
- जिनराज चरन मन मति बिसरै
- जिनराज ना विसारो, मति जन्म वादि हारो
- जिनरायके पाय सदा शरनं
- जिनवर-आनन-भान निहारत
- जिनवरमूरत तेरी, शोभा कहिय न जाय
- जिनवानी जान सुजान रे
- जिनवानी प्रानी! जान लै रे
- जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी
- जियको लोभ महा दुखदाई, जाकी शोभा (?)
- जिया तुम चालो अपने देश
- जीव! तू भ्रमत सदीव अकेला
- जीव! तैं मूढ़पना कित पायो
- जीव तू अनादिहीतैं भूल्यौ शिवगैलवा
- जीवन के परिनामनिकी यह
- जे दिन तुम विवेक बिन खोये
- जे सहज होरी के खिलारी
- जेनैन्द्र सिद्धांत कोष
- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
- जो आज दिन है वो, कल ना रहेगा, कल ना रहेगा
- जो तैं आतमहित नहिं कीना
- ज्ञाता सोई सच्चा वे, जिन आतम अच्चा
- ज्ञान ज्ञेयमाहिं नाहिं, ज्ञेय हू न ज्ञानमाहिं
- ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन
- ज्ञानी ऐसी होली मचाई
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै 2
- ज्ञानी जीव निवार भरमतम
- झूठा सपना यह संसार
- तन देख्या अथिर घिनावना
- तुम चेतन हो
- तुम ज्ञानविभव फूली बसन्त, यह मन मधुकर
- तुमको कैसे सुख ह्वै मीत!
- तू काहेको करत रति तनमें
- तू तो समझ समझ रे!
- तू स्वरूप जाने बिना दुखी
- तू ही मेरा साहिब सच्चा सांई
- तेरी भगति बिना धिक है जीवना
- तेरी शांति छवि पे मैं बलि बलि जाऊँ
- तेरी शीतल-शीतल मूरत लख
- तेरी सुन्दर मूरत देख प्रभो
- तेरे ज्ञानावरन दा परदा