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- Tattvarth Sutra - Chapter 1 - Mangalacharan
- Tattvarth Sutra - Chapter 1 - Sutra 1
- Tattvarth Sutra - Chapter 1 - Sutra 15-20
- Tattvarth Sutra - Chapter 1 - Sutra 2
- Tattvarth Sutra - Chapter 1 - Sutra 21-25
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- Tattvarth Sutra - Chapter 3 - Sutra 27
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- Tattvarth Sutra - Chapter 3 - Sutra 3
- Tattvarth Sutra - Chapter 3 - Sutra 32-38
- Tattvarth Sutra - Chapter 3 - Sutra 4-10
- Tattvarth Sutra - Chapter 4 - Sutra 1
- Tattvarth Sutra - Chapter 4 - Sutra 10-11
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- अज्ञानी पाप धतूरा न बोय
- अति संक्लेश विशुद्ध शुद्ध पुनि
- अध्यात्म सहस्री प्रवचन
- अध्याहार
- अन्तर उज्जवल करना रे भाई!
- अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ
- अपहृत-संयम
- अप्राप्त शब्द
- अब अघ करत लजाय रे भाई
- अब घर आये चेतनराय
- अब पूरी कर नींदड़ी, सुन जिया रे! चिरकाल
- अब मेरे समकित सावन आयो
- अब मोहि जानि परी
- अब समझ कही
- अरहंत सुमर मन बावरे
- अरिरजरहस हनन प्रभु अरहन
- अरे! हाँ चेतो रे भाई
- अरे जिया, जग धोखे की टाटी
- अरे हाँ रे तैं तो सुधरी बहुत बिगारी
- अरे हो अज्ञानी तूने कठिन मनुषभव पायो
- अरे हो जियरा धर्म में चित्त लगाय रे
- अल्पबहुत्व - प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ 1-5
- अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी
- अहो यह उपदेशमाहीं
- आकुलरहित होय इमि निशदिन
- आगै कहा करसी भैया
- आज मैं परम पदारथ पायौ
- आज सी सुहानी सु घड़ी इतनी
- आतम अनुभव आवै जब निज
- आतम अनुभव कीजै हो
- आतम अनुभव सार हो, अब जिय सार हो, प्राणी
- आतम काज सँवारिये, तजि विषय किलोलैं
- आतम जान रे जान रे जान
- आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप
- आतम जानो रे भाई!
- आतम महबूब यार, आतम महबूब
- आतम रूप अनूपम अद्भुत
- आतमज्ञान लखैं सुख होइ
- आतमरूप अनूपम है, घटमाहिं विराजै हो
- आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई ।
- आत्मानुशासन प्रवचन
- आप भ्रमविनाश आप
- आपा प्रभु जाना मैं जाना
- आप्त परीक्षा प्रवचन
- आप्त मीमांसा प्रवचन
- आयो रे बुढ़ापो मानी, सुधि बुधि बिसरानी
- आरति कीजै श्रीमुनिराजकी, अधमउधारन आतमकाजकी
- आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी
- आरसी देखत मन आर-सी लागी
- आलाप पद्धति पर प्रवचन
- आवै न भोगनमें तोहि गिलान
- इस जीवको, यों समझाऊं री!
- उत्तम नरभव पायकै
- उरग-सुरग-नरईश शीस जिस, आतपत्र त्रिधरे
- ए मान ये मन कीजिये भज प्रभु तज सब बात हो
- ए मेरे मीत! निचीत कहा सोवै
- ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावै
- ऐसा योगी क्यों न अभयपद पावै
- ऐसी समझके सिर धूल
- ऐसे जैनी मुनिमहाराज
- ऐसे विमल भाव जब पावै
- ऐसे साधु सुगुरु कब मिल हैं
- ऐसे साधु सुगुरु कब मिलि हैं
- और अबै न कुदेव सुहावै
- और ठौर क्यों हेरत प्यारा, तेरे हि घट में जानन हारा
- और सबै जगद्वन्द मिटावो
- कबधौं मिलै मोहि श्रीगुरु मुनिवर
- कर कर आतमहित रे प्रानी
- कर मन! निज-आतम-चिंतौन
- कर रे! कर रे! कर रे!, तू आतम हित कर रे
- करौ रे भाई, तत्त्वारथ सरधान
- करौं आरती वर्द्धमानकी । पावापुर निरवान थान की
- कर्मनिको पेलै, ज्ञान दशामें खेलै
- कहा मानले ओ मेरे भैया
- कहे सीताजी सुनो रामचन्द्र
- काया गागरि, जोझरी, तुम देखो चतुर विचार हो
- कारज एक ब्रह्महीसेती
- काल अचानक ही ले जायगा
- काहे पाप करे काहे छल
- काहेको सोचत अति भारी, रे मन!
- कींपर करो जी गुमान
- कुमति कुनारि नहीं है भली रे
- कौन काम अब मैंने कीनों, लीनों सुर अवतार हो
- खेलौंगी होरी, आये चेतनराय
- गणित कक्षा - सारिकाजी
- गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर
- गलतानमता कब आवैगा
- गहु सन्तोष सदा मन रे! जा सम और नहीं धन रे
- गाफिल हुवा कहाँ तू डोले, दिन जाते तेरे भरती में
- गिरिवनवासी मुनिराज
- गुणस्थान कक्षा - सारिकाजी
- गुरु कहत सीख इमि बार बार
- गोम्मटसार कर्मकांड - शिविर (2019)
- गोम्मटसार कर्मकांड पर प्रवचन
- गोम्मटसार जीवकांड - ऑनलाइन शिविर (2020)
- गोम्मटसार जीवकांड - शिविर (2016-18)
- गौतम स्वामीजी मोहि वानी तनक सुनाई
- घटमें परमातम ध्याइये हो, परम धरम धनहेत
- घड़ि-घड़ि पल-पल छिन-छिन निशदिन
- चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ के
- चरखा चलता नाहीं (रे) चरखा हुआ पुराना (वे)
- चारित्रपाहुड गाथा 1
- चारित्रपाहुड गाथा 10
- चारित्रपाहुड गाथा 11
- चारित्रपाहुड गाथा 13
- चारित्रपाहुड गाथा 14
- चारित्रपाहुड गाथा 15
- चारित्रपाहुड गाथा 16
- चारित्रपाहुड गाथा 17
- चारित्रपाहुड गाथा 18
- चारित्रपाहुड गाथा 19
- चारित्रपाहुड गाथा 20
- चारित्रपाहुड गाथा 21
- चारित्रपाहुड गाथा 22
- चारित्रपाहुड गाथा 23
- चारित्रपाहुड गाथा 24
- चारित्रपाहुड गाथा 25
- चारित्रपाहुड गाथा 26
- चारित्रपाहुड गाथा 27
- चारित्रपाहुड गाथा 28
- चारित्रपाहुड गाथा 29
- चारित्रपाहुड गाथा 3
- चारित्रपाहुड गाथा 30
- चारित्रपाहुड गाथा 31
- चारित्रपाहुड गाथा 32
- चारित्रपाहुड गाथा 33
- चारित्रपाहुड गाथा 34
- चारित्रपाहुड गाथा 35
- चारित्रपाहुड गाथा 36
- चारित्रपाहुड गाथा 37
- चारित्रपाहुड गाथा 38
- चारित्रपाहुड गाथा 39
- चारित्रपाहुड गाथा 4
- चारित्रपाहुड गाथा 40
- चारित्रपाहुड गाथा 41
- चारित्रपाहुड गाथा 42
- चारित्रपाहुड गाथा 43
- चारित्रपाहुड गाथा 44
- चारित्रपाहुड गाथा 45
- चारित्रपाहुड गाथा 5
- चारित्रपाहुड गाथा 6
- चारित्रपाहुड गाथा 7
- चारित्रपाहुड गाथा 8
- चारित्रपाहुड गाथा 9
- चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव
- चित चिंतकैं चिदेश कब
- चित्त! चेतनकी यह विरियां रे
- चिदरायगुन सुनो मुनो
- चिन्मूरत दृग्धारी की मोहे
- चेतन! तुम चेतो भाई, तीन जगत के नाथ
- चेतन! मान ले बात हमारी
- चेतन अब धरि सहजसमाधि
- चेतन कौन अनीति गही रे
- चेतन खेलै होरी
- चेतन तैं यौं ही भ्रम ठान्यो
- चेतन निज भ्रमतैं भ्रमत रहै
- चेतन प्राणी चेतिये हो,
- चेतन यह बुधि कौन सयानी
- चेतनजी! तुम जोरत हो धन, सो धन चलत नहीं तुम लार
- चौबीसौं को वंदना हमारी
- छांडत क्यौं नहिं रे
- छांडि दे या बुधि भोरी
- जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि
- जग में श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे
- जगत जन जूवा हारि चले
- जगत में सम्यक उत्तम भाई
- जगदानंदन जिन अभिनंदन
- जपि माला जिनवर नामकी
- जबतैं आनंदजननि दृष्टि परी माई
- जम आन अचानक दावैगा
- जय जय जग-भरम-तिमिर
- जय श्री ऋषभ जिनंदा! नाश तौ करो स्वामी मेरे दुखदंदा
- जयश्यामा
- जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल
- जाऊँ कहाँ तज शरन तिहारे
- जानके सुज्ञानी जैनवानी की सरधा लाइये
- जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी
- जानत क्यौं नहिं रे