बाहुबली
From जैनकोष
- नागकुमार चरित के रचयिता एक कन्नड़ कवि । समय - ई. १५६० । (ती. /४/३११)
- म.पु./सर्ग/श्लोक नं. अपने पूर्व भव नं. ७ में पूर्व विदेह वत्सकावती देश के राजा प्रीतिवर्धन के मन्त्री थे (८/२११) फिर छठे भव में उत्तरकुरु में भोग भूमिज हुए (८/२१२), पाँचवें भव में कनकाभदेव (८/२१३) चौथे भव में वज्रजंघ (आदिनाथ भगवान् का पूर्व भव) के ‘आनन्द’ नाम पुरोहित हुए (८/२१७) तीसरे भव में अधोग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए (९/९०) दूसरे भव में वज्रसेन के पुत्र महाबाहु हुए (११/१२) पूर्व भव में अहमिन्द्र हुए (४७/३६५-३६६) वर्तमान भव में ऋषभ भगवान् के पुत्र बाहुबली हुए (१६/६) बड़ा होने पर पोदनपुर का राज्य प्राप्तकिया (१७/७७) । स्वाभिमानी होने पर भरत को नमस्कार न कर उनको जल, मल्ल व दृष्टि युद्ध में हरा दिया । (३६/६०) भरत ने क्रुद्ध होकर इन पर चक्र चला दिया, परन्तु उसका इन पर कुछ प्रभाव न हुआ (३६/६६) इससे विरक्त हो इन्होंने दीक्षा ले ली (३६/१०४) । एक वर्ष का प्रतिमा योग धारण किया (३६/१०६) एक वर्ष पश्चात् भरत ने आकर भक्तिपूर्वक इनकी पूजा की तभी इनको केवललब्धिकी प्राप्ति हो गयी (३६/१८५) । अन्त में मुक्ति प्राप्त की ।
- बाहुबली जी के एक भी शल्य न थी - देखें - शल्य । बाहुबली जी की प्रतिमा सम्बन्धी दृष्टिभेद / ४- देखें - पूजा / ३ / १० ।