मंदर
From जैनकोष
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सिद्धांतकोष से
सुमेरु पर्वत का अपर नाम–देखें सुमेरु - 2।
पूर्व पुष्करार्ध का मेरु–देखें लोक - 4.4
पूर्व विदेह का एक वक्षार पर्वत–देखें लोक - 5.3।
नंदन वन का, कुंडल पर्वत का तथा रुचक पर्वत का कूट–देखें लोक - 5.5,12,13
विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर–देखें विद्याधर - 4।
- ( महापुराण/59/ श्लो.नं.)
पूर्व भवों में क्रम से – वारुणी, पूर्णचंद्र, वैडूर्यदेव, यशोधरा, कापिष्ठ स्वर्ग में रुचक प्रभदेव, रत्नायुध देव, द्वितीय नरक, श्रीधर्मा, ब्रह्मस्वर्ग का देव, जयंत तथा धरणेंद्र होते हुए वर्तमान में विमलनाथ भगवान् के गणधर हुए (310-312)।
पुराणकोष से
(1) सुमेरु पर्वत का अपर नाम । यह जंबूद्वीप के मध्य में स्थित है । महापुराण 51. 2, पद्मपुराण - 82.6-8, हरिवंशपुराण 2.40, 4.11
(2) राजा जरासंध का पुत्र । हरिवंशपुराण 52.35
(3) मथुरा नगरी के राजा अनंतवीर्य और रानी अमितवती का पुत्र । मेरु इसका बड़ा भाई था । ये दोनों भाई निकट भव्य थे । दोनों ने विमलनाथ तीर्थंकर से अपने पूर्व भव सुनकर उनसे दीक्षा ग्रहण कर ली थी तथा उन्हीं के दोनों गणधर होकर मोक्ष गये । हरिवंशपुराण के अनुसार इसके पिता का नाम रत्नवीर्य और माता का नाम अमितप्रभा था । महापुराण 19.302-304, 310-312 हरिवंशपुराण 27.136
(4) कुरुवंशी एक नृप । यह राजा ज्ञात का पुत्र तथा श्रीचंद्र का पिता था । हरिवंशपुराण 45.11-12
(5) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में स्थित नंदन वन का दूसरा कूट । हरिवंशपुराण 5.329
(6) रुचक्रगिरि को दक्षिण दिशा के आठ कूटों में तीसरा कूट । यहाँँ सुप्रबुद्धा देवी रहती है । हरिवंशपुराण 5.708
(7) वानरवंशी राजा मेरु का पुत्र तथा समीरणगति का पिता । पद्मपुराण -6. 161
(8) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र का एक नगर । यहाँ के सद्गृहस्थ प्रियनंदी के पुत्र दमयंत ने सप्त गुणों से युक्त होकर साधुओं की पारणा करायी थी । अनेक सद्गतियों को प्राप्त करके मोक्ष पाने वाला दमयंत यहीं के निवासी एक सद्गृहस्थ प्रियनंदी का पुत्र था । पद्मपुराण - 17.141-165 देखें दमयंत
(9) सीता-स्वयंवर में सम्मिलित एक नृप । पद्मपुराण - 28.215,पद्मपुराण - 54.34-36