|
|
(19 intermediate revisions by 2 users not shown) |
Line 1: |
Line 1: |
| <ol>
| | {| class="wikitable" |
| <li class='HindiText'>[[ #1 |भेद व लक्षण तथा तत्संबंधी शंका समाधान]]</li>
| | |+ |
| <ol>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #1.1 | इंद्रिय सामान्य का लक्षण ।]]</li>
| | ! प्रमाण पृष्ठ नं. !! योग स्थान !! जघन्य या उत्कृष्ट !! काल जघन्य !! काल उत्कृष्ट !! सम्भव जीव समास !! उस पर्याय का विशेष समय |
| <li class='HindiText'>[[ #1.2 | इंद्रिय सामान्य के भेद ।]]</li>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #1.3 | द्रव्येन्द्रिय के उत्तर भेद ।]]</li>
| | | 421, 424 || उपपाद || जघन्य|| 1 समय || 1 समय|| सूक्ष्म, बादर, एक, द्वी, त्रि. चतुरिन्द्रिय || विग्रहगति में वर्तमान व तद्भवस्थ होने के प्रथम समय |
| <li class='HindiText'>[[ #1.4 | भावेन्द्रिय के उत्तर भेद ।]]</li>
| | |- |
| <p class="HindiText">• लब्धि व उपयोग इंद्रिय - देखें [[ लब्धि#1.1 | लब्धि 1.1 ]]; [[उपयोग#1.1 | उपयोग 1.1]]. </p>
| | | 428 || उपपाद || उत्कृष्ट|| 1 समय|| 1 समय|| पंचेेद्रिय, असंज्ञी, संज्ञी, लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त || तद्भवस्थ होने के प्रथम समय में |
| <p class="HindiText">• इंद्रिय व मन जीतने का उपाय - देखें [[ संयम#2.5 | संयम - 2.5]]</p>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #1.5 | निर्वृत्ति व उपकरण भावेन्द्रियों के लक्षण ।]]</li>
| | | 421, 425|| एकांतानुवृद्धि || जघन्य|| 1 समय|| 1 समय|| उपरोक्त सर्व जीव लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त || तद्भवस्थ होने के द्वितीय समय |
| <li class='HindiText'>[[ #1.6 | भावेन्द्रिय सामान्य का लक्षण।]]</li>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #1.7 | पाँचों इन्द्रियों के लक्षण ।]]</li>
| | | 428|| एकांतानुवृद्धि || उत्कृष्ट || 1 समय|| 1 समय|| उपरोक्त सर्व जीव लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त|| एकांतानुवृद्धि योगकाल का अन्तिम समय |
| <li class='HindiText'>[[ #1.8 | उपयोग को इंद्रिय कैसे कह सकते हैं ।]]</li>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #1.9 | चल रूप आत्मप्रदेशों में इंद्रिय-पना कैसे घटित होता है। ।]]</li>
| | | 429 || एकांतानुवृद्धि || उत्कृष्ट|| 1 समय|| 1 समय|| || उत्पन्न होने के अन्तर्मुहुर्त पश्चात अनन्तर समय |
| | | |- |
| </ol>
| | | 423 || एकांतानुवृद्धि || जघन्य|| 1 समय|| 4 समय|| द्वी-संज्ञी निर्वृत्यपर्याप्त || पर्याप्ति का प्रथम समय पर्याप्ति के निकट |
| <li class='HindiText'>[[ #2 | इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपन]]</li>
| | |- |
| <p>• अवग्रह ईहा आदिका उत्पत्ति क्रम - देखें [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान - 3]]</p>
| | | 423 || एकांतानुवृद्धि || उत्कृष्ट|| 1 समय|| 4 समय|| द्वी-संज्ञी निर्वृत्यपर्याप्त|| पर्याप्ति का प्रथम समय पर्याप्ति के निकट |
| <ol>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #2.1 | इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी पने का निर्देश।]]</li>
| | | 431, 422, 427|| परिणाम || जघन्य|| 1 समय|| 4 समय|| सूक्ष्म, बादर, एक-संज्ञी निर्वृत्यपर्याप्त|| छठी पर्याप्ति के प्रथम समय से आगे |
| <li class='HindiText'>[[ #2.2 | चक्षु को अप्राप्यकारी कैसे कहते हो ।]]</li>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #2.3 | अर्थावग्रह व व्यंजनावग्रह में अंतर ।]]</li>
| | | 426 || परिणाम || जघन्य|| 1 समय|| 4 समय|| सूक्ष्म, बादर, एक. लब्ध्यपर्याप्त|| परभविक आयु बन्ध योग्य काल से उपरिम भवस्थिति |
| <li class='HindiText'>[[ #2.4 | अर्थावग्रह व व्यंजनाग्रह का स्वामित्व ।]]</li> | | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #2.5 | अप्राप्यकारी तीन इंद्रियों में अवग्रह सिद्धि ।]]</li>
| | | 427, 430 || परिणाम || जघन्य|| 1 समय|| 4 समय|| सूक्ष्म, बादर, एक. लब्ध्यपर्याप्त || आयु बन्ध योग्य काल के प्रथम समय से तृतीय भाग तक में वर्तमान जीव |
| <p class="HindiText"> • प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी इंद्रियाँ। - देखें [[ इंद्रिय#1.2 | इंद्रिय - 1.2]]</p>
| | |- |
| <p class="HindiText"> • अवग्रह और दर्शन में अंतर। - देखें [[ दर्शन# | दर्शन ]]</p>
| | | 422, 423|| परिणाम || जघन्य|| 1 समय|| 2 समय || सूक्ष्म, बादर, एक. निर्वृत्यपर्याप्त|| परंपरा शेष पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त हो चुकने पर |
| <p class="HindiText"> • अवग्रह व ईहा में अंतर।- देखें [[ अवग्रह#1.2.2 | अवग्रह - 1.2.2]]</p>
| | |- |
| <li class='HindiText'>[[ #2.6 | अवग्रह व अवाय में अंतर।]]</li>
| | | 429, 430 || परिणाम || जघन्य|| 1 समय|| 2 समय || द्वी-संज्ञी लब्ध्यपर्याप्त|| स्व स्व भवस्थिति के तृतीय भाग में वर्तमान आयुबन्ध योग्य प्रथम समय से भव के अन्त तक |
| </ol>
| | |- |
| </ol>
| | | 422 || परिणाम || जघन्य|| 1 समय|| 2 समय || सूक्ष्म, बादर, एक-संज्ञी, लब्ध्यपर्याप्त .|| स्व स्व भवस्थिति के तृतीय भाग में वर्तमान आयुबन्ध योग्य प्रथम समय से भव के अन्त तक |
| | | |- |
| | | | 430 || परिणाम || जघन्य|| 1 समय|| 2 समय || द्वी-संज्ञी लब्ध्यपर्याप्त|| जीवन के अन्तिम तृतीय भाग के प्रथम समय से विश्रमण काल के अनन्तर अधस्तन समय तक |
| <p class="HindiText"><strong>1. भेद व लक्षण तथा तत्संबंधी शंका समाधान</strong></p>
| | |- |
| <p class="HindiText">1. इंद्रिय सामान्य का लक्षण</p>
| | | 431 || परिणाम || उत्कृष्ट|| 1 समय|| 2 समय || द्वी-संज्ञी, निर्वृत्यपर्याप्त || परम्परा पांचों पर्याप्तियों से पर्याप्त छह में से एक भी पर्याप्ति के अपूर्ण रहने तक भी नहीं होता। |
| <p class="HindiText">2. इंद्रिय सामान्य के भेद</p>
| | |} |
| <p class="HindiText">3. द्रव्येन्द्रिय के उत्तर भेद</p>
| |
| <p class="HindiText">4. भावेन्द्रिय के उत्तर भेद</p>
| |
| <p class="HindiText">• लब्धि व उपयोग इंद्रिय - देखें [[ लब्धि#1.1 | लब्धि 1.1 ]]; [[उपयोग#1.1 | उपयोग 1.1]]. </p>
| |
| <p class="HindiText">• इंद्रिय व मन जीतने का उपाय - देखें [[ संयम#2.5 | संयम - 2.5]]</p>
| |
| <p class="HindiText">5. निर्वृत्ति व उपकरण भावेन्द्रियों के लक्षण</p>
| |
| <p class="HindiText">6. भावेन्द्रिय सामान्य का लक्षण</p>
| |
| <p class="HindiText">7. पाँचों इन्द्रियों के लक्षण</p>
| |
| <p class="HindiText">8. उपयोग को इंद्रिय कैसे कह सकते हैं</p>
| |
| <p class="HindiText">9. चल रूप आत्मप्रदेशों में इंद्रिय-पना कैसे घटित होता है।</p>
| |
| <p class="HindiText"><strong>2. इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपन</strong></p>
| |
| <p class="HindiText">1. इन्द्रियों में प्राप्यकारी व अप्राप्यकारी पने का निर्देश</p>
| |
| <p class="HindiText">• चार इंद्रियाँ प्राप्त व अप्राप्त सब विषयों को ग्रहण करती है - देखें [[ अवग्रह#2.5 | अवग्रह - 2.5]]</p>
| |
| <p class="HindiText">2. चक्षु को अप्राप्यकारी कैसे कहते हो</p>
| |
| <p class="HindiText">3. श्रोत्र को भी अप्राप्यकारी क्यों नहीं मानते</p>
| |
| <p class="HindiText">4. स्पर्शनादि सभी इन्द्रियों में भी कथंचित् अप्राप्यकारीपने संबंधी</p>
| |
| <p class="HindiText">5. फिर प्राप्यकारी व अप्राप्यकारीपने से क्या प्रयोजन</p>
| |
| <p class="HindiText"><strong>3. इंद्रिय निर्देश</strong></p>
| |
| <p class="HindiText">1. भावेंद्रिय ही वास्तविक इंद्रिय है</p>
| |
| <p class="HindiText">2. भावेंद्रिय को ही इंद्रिय मानते हो तो उपयोग शून्य दशा में या संशयादि दशा में जीव अनिंद्रिय हो जायेगा</p>
| |
| <p class="HindiText">3. भावेंद्रिय होने पर ही द्रव्येंद्रिय होती है</p>
| |
| <p class="HindiText">4. द्रव्येंद्रियों का आकार</p>
| |
| <p class="HindiText">5. इन्द्रियों की अवगाहना</p>
| |
| <p class="HindiText">6. इन्द्रियों का द्रव्य व क्षेत्र की अपेक्षा विषय ग्रहण</p>
| |
| <p class="HindiText">7. इन्द्रियों के विषय का काम व भोग रूप विभाजन</p>
| |
| <p class="HindiText">8. इन्द्रियों के विषयों संबंधी दृष्टिभेद</p>
| |
| <p class="HindiText">9. ज्ञान के अर्थ में चक्षु का निर्देश</p>
| |
| <p class="HindiText">• मन व इन्द्रियों में अंतर संबंधी - देखें [[ मन#3 | मन - 3]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• इंद्रिय व इंद्रिय प्राण में अंतर - देखें [[ प्राण ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• इन्द्रिय कषाय व क्रिया रूप आस्रवों मे अंतर - देखें [[ क्रिया ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• इन्द्रियों मे उपस्थ व जिह्वा इंद्रिय की प्रधानता - देखें [[ संयम#2 | संयम - 2]]</p>
| |
| <p class="HindiText"><strong>4. इंद्रिय मार्गणा व गुणस्थान निर्देश</strong></p>
| |
| <p class="HindiText">1. इंद्रिय मार्गणा की अपेक्षा जीवों के भेद</p>
| |
| <p class="HindiText">• दो, तीन और चार इंद्रिय वाले विकलेंद्रिय; और पंचेंद्रिय सकलेंद्रिय कहलाते हैं - देखें [[ त्रस ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">2. एकेंद्रियादि जीवों के लक्षण</p>
| |
| <p class="HindiText">3. एकेंद्रियसे पंचेंद्रिय पर्यंत इन्द्रियों का स्वामित्व</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रियादि जीवों के भेद - देखें [[ जीव समास ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रियादि जीवों की अवगाहना - देखें [[ अवगाहना#2 | अवगाहना - 2]]</p>
| |
| <p class="HindiText">4. एकेंद्रिय आदिकों में गुणस्थानों का स्वामित्व</p>
| |
| <p class="HindiText">• सयोग व अयोग केवली को पंचेंद्रिय कहने संबंधी - देखें [[ केवली#5 | केवली - 5]]</p>
| |
| <p class="HindiText">5. जीव अनिंद्रिय कैसे हो सकता है</p>
| |
| <p class="HindiText">• इन्द्रियों के स्वामित्व संबंधी गुणस्थान, जीवसमास मार्गणा स्थानादि 20 प्ररूपणाएँ - देखें [[ सत् ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• इंद्रिय संबंधी सत् (स्वामित्व), संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ - देखें [[ सत्]]; [[ अल्पबहुत्व#2.5 | अल्पबहुत्व 2.5 ]] ; [[ स्पर्शन]]; [[ संख्या_विषयक_प्ररूपणाएँ ]]; [[ क्षेत्र_-_इंद्रिय ]]; [[ काल ]]; [[ अंतर ]]; [[ भाव#2.10 | भाव 2.10 ]]; </p>
| |
| <p class="HindiText">• इंद्रिय मार्गणा में आय के अनुसार ही व्यय होने का नियम - देखें [[ मार्गणा ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• इंद्रिय मार्गणा से संभव कर्मो का बंध उदय सत्त्व - देखें [[ बंध ]] ; [[ उदय ]]; [[ सत्त्व ]]; </p>
| |
| <p class="HindiText">• कौन-कौन जीव मरकर कहाँ-कहाँ उत्पन्न हो और क्या क्या गुण उत्पन्न करे - देखें [[ जन्म#6 | जन्म - 6]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• इंद्रिय मार्गणा मे भावेंद्रिय इष्ट है - देखें [[ इंद्रिय#3 | इंद्रिय - 3]]</p>
| |
| <p class="HindiText"><strong>5. एकेंद्रिय व विकलेंद्रिय निर्देश</strong></p>
| |
| <p class="HindiText">• त्रस व स्थावर - देखें [[ त्रस ]] ;; [[ स्थावर ]]; </p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रियों में जीवत्व की सिद्धि - देखें[[ स्थावर ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रियों का लोक में अवस्थान - देखें [[ स्थावर ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रिय व विकलेंद्रिय नियम से सम्मूर्छिन ही होते है - देखें [[ सम्मूर्च्छन ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रिय व विकलेंद्रियो में अंगोपांग, संस्थान, संहनन, व दुःस्वर संबंधी नियम - देखें [[ उदय ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">1. एकेंद्रिय असंज्ञी होते हैं</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रिय आदिको में मन के अभाव संबंधी - देखें [[ संज्ञी ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रिय जाति नामकर्म के बंध योग्य परिणाम - देखें [[ जाति ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रियो में सासादन गुणस्थान संबंधी चर्चा - देखें [[ जन्म ]] </p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रिय आदिको में क्षायिक सम्यक्त्व के अभाव संबंधी - देखें [[ तिर्यंच ]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• एकेंद्रियों से निकल सीधा मनुष्य हो क्षायिक सम्यक्त्व व मोक्ष प्राप्त करने की संभावना - देखें [[ जन्म#5 | जन्म - 5]]</p>
| |
| <p class="HindiText">• विकलेंद्रिय व पंचेंद्रिय जीवों का लोक में अवस्थान - देखें [[ तिर्यंच#3 | तिर्यंच - 3]]</p>
| |