स्पर्श भेद व लक्षण: Difference between revisions
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<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/8 </span><span class="SanskritText">यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम।</span> =<span class="HindiText">जिसके उदय से स्पर्श की उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म है। <span class="GRef"> (राजवार्तिक/811/10/577/14); (धवला 1/5,5,101/364/8); गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/15) </span></span> | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/8 </span><span class="SanskritText">यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम।</span> =<span class="HindiText">जिसके उदय से स्पर्श की उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म है। <span class="GRef"> (राजवार्तिक/811/10/577/14); (धवला 1/5,5,101/364/8); गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/15) </span></span> | ||
<p><span class="GRef"> धवला 6/1,9-1,28/55/9 </span><span class="PrakritText">जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जाइपडिणियदो पासो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स पाससण्णा कारणे कज्जुवयारादो।</span> =<span class="HindiText">जिस कर्मस्कंध के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत स्पर्श उत्पन्न होता है, उस कर्म स्कंध की कारण में कार्य के उपचार से स्पर्श यह संज्ञा है।</span></p> | <p><span class="GRef"> धवला 6/1,9-1,28/55/9 </span><span class="PrakritText">जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जाइपडिणियदो पासो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स पाससण्णा कारणे कज्जुवयारादो।</span> =<span class="HindiText">जिस कर्मस्कंध के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत स्पर्श उत्पन्न होता है, उस कर्म स्कंध की कारण में कार्य के उपचार से स्पर्श यह संज्ञा है।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="1.3"><strong>3. स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण</strong></p> | <p class="HindiText" id="1.3"><strong>3. स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण</strong></p> | ||
<span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/8/29/7 </span><span class="SanskritText">तदेव स्पर्शनं त्रिकालगोचरम् ।</span> =<span class="HindiText">त्रिकाल विषयक निवास को स्पर्श कहते हैं। <span class="GRef"> (राजवार्तिक/1/8/5/41/30) </span></span> | |||
<p | <p><span class="GRef"> धवला 1/1,1,7/गाथा/102/158 </span> <span class="PrakritText">अत्थित्तं पुण संतं अत्थित्तस्स य तहेव परिमाणं। पच्चुप्पण्णं खेत्तं अदीद-पदुप्पण्णणं फुसणं।102।</span> | ||
<span class="GRef"> धवला 1/1,1,7/158/5 </span><span class="PrakritText">तेहिंदो वलद्ध-संत-पमाण खेत्ताणं अदीद-काल-विसिट्ठफासं परूवेदि फोसणाणुगमो।</span> =<span class="HindiText">1. अस्तित्व का प्रतिपादन करने वाली प्ररूपणा को सत्प्ररूपणा कहते हैं। जिन पदार्थों के अस्तित्व का ज्ञान हो गया है ऐसे पदार्थों के परिमाण का कथन करने वाली संख्या प्ररूपणा है, वर्तमान क्षेत्र का वर्णन करने वाली क्षेत्र प्ररूपणा है। अतीत स्पर्श और वर्तमान स्पर्श का वर्णन करने वाली स्पर्शन प्ररूपणा है।102। 2. उक्त तीनों अनुयोगों के द्वारा जाने हुए सत् संख्या और क्षेत्ररूप द्रव्यों के अतीतकाल विशिष्ट वर्तमान स्पर्श का स्पर्शनानुयोग वर्णन करता है।</span><br/> | |||
<span class="GRef"> धवला 4/1,4,1/144/8 </span><span class="SanskritText">अस्पर्शि स्पृश्यत इति स्पर्शनम् ।</span> =<span class="HindiText">जो भूतकाल में स्पर्श किया है और वर्तमान में स्पर्श किया जा रहा है वह स्पर्शन कहलाता है।</span> | |||
<p class="HindiText" id="1.4"><strong>4. स्पर्श के भेद</strong></p> | <p class="HindiText" id="1.4"><strong>4. स्पर्श के भेद</strong></p> | ||
<p class="HindiText" id="1.4.1">1. | <p class="HindiText" id="1.4.1">1. स्पर्श गुण व स्पर्श नामकर्म के भेद</p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> षट्खंडागम 6/1,9,1/सूत्र 40/75 </span> <span class="PrakritText">जं तं पासणामकम्मं तं अट्ठविहं, कक्खडणामं मउवणामं गुरुअणामं लहुअणामं णिद्धणामं लुक्खणामं सीदणाम उसुणणामं चेदि।40।</span> =<span class="HindiText">जो स्पर्श नामकर्म है वह आठ प्रकार का है-कर्कशनामकर्म, मृदुकनामकर्म, गुरुकनामकर्म, लघुकनामकर्म, स्निग्धनामकर्म, रूक्षनामकर्म, शीतनामकर्म और उष्णनामकर्म। <span class="GRef"> (षट्खंडागम 13/5,5/सूत्र 113/370); (सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/8); (पंचसंग्रह/प्राकृत/2/4/टीका/48/2); (राजवार्तिक/8/11/10/577/14); (गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/15) </span></span></p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/11 </span><span class="SanskritText">सोऽष्टविध:; मृदुकठिनगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षभेदात् ।</span>=<span class="HindiText">कोमल, कठोर, भारी, हलका, गरम, ठंडा, स्निग्ध और रूक्ष के भेद से वह स्पर्श आठ प्रकार का है। <span class="GRef">(राजवार्तिक 5/23/7/484); (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/885/1); (द्रव्यसंग्रह टीका/7/19); (परमात्मप्रकाश टीका/1/19) </span></span></p> | ||
<p class="HindiText" id="1.4.2">2. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.1</p> | <p class="HindiText" id="1.4.2">2. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.1</p> | ||
<p class="HindiText"><strong>नोट</strong>-(नाम, स्थापना आदि भेद=देखें [[ निक्षेप ]])।</p> | <p class="HindiText"><strong>नोट</strong>-(नाम, स्थापना आदि भेद=देखें [[ निक्षेप ]])।</p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> धवला 4/1,4,1/143/2 </span><span class="PrakritText">मिस्सयदव्वफोसणं छण्हं दव्वाणं संजोएण एगूणसट्ठिभेयभिण्णं।</span> =<span class="HindiText">मिश्र द्रव्य स्पर्शन चेतन अचेतन स्वरूप छहों द्रव्यों के संयोग से उनसठ भेदवाला होता है।</span></p> | ||
<p class="HindiText"><strong>विशेषार्थ</strong>-मिश्र तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य स्पर्श के सचित्त व अचित्त रूप छह द्रव्यों के 65 संयोगी भंग निम्न प्रकार हैं।</p> | <p class="HindiText"><strong>विशेषार्थ</strong>-मिश्र तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य स्पर्श के सचित्त व अचित्त रूप छह द्रव्यों के 65 संयोगी भंग निम्न प्रकार हैं।</p> | ||
<table class="HindiText"> | <table class="HindiText"> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>एक संयोगी भंग = छह द्रव्यों का पृथक्-पृथक् ग्रहण करने से </td> | <td>एक संयोगी भंग = छह द्रव्यों का पृथक्-पृथक् ग्रहण करने से </td> | ||
<td>= | <td>= 6 </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>द्विसंयोगी भंग = (6x5) ÷ (1x2)=30/2 </td> | <td>द्विसंयोगी भंग = (6x5) ÷ (1x2)=30/2 </td> | ||
<td>= | <td>= 15 </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>त्रिसंयोगी भंग = (6x5x4) ÷ (1x2x3)=120/6 </td> | <td>त्रिसंयोगी भंग = (6x5x4) ÷ (1x2x3)=120/6 </td> | ||
<td>= | <td>= 20 </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>चतुसंयोगी भंग = (6x5x4x3) ÷ (1x2x3x4)= 360/24 </td> | <td>चतुसंयोगी भंग = (6x5x4x3) ÷ (1x2x3x4)= 360/24 </td> | ||
<td>= | <td>= 15 </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>पंचसंयोगी भंग = (6x5x4x3x2) ÷ (1x2x3x4x5)= 720/120 </td> | <td>पंचसंयोगी भंग = (6x5x4x3x2) ÷ (1x2x3x4x5)= 720/120 </td> | ||
<td>= | <td>= 6 </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>छह संयोगी भंग = (6x5x4x3x2x1) ÷ (1x2x3x4x5x6)= 720/720</td> | <td>छह संयोगी भंग = (6x5x4x3x2x1) ÷ (1x2x3x4x5x6)= 720/720</td> | ||
<td>= | <td>= 1 </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>जीव के साथ जीव के स्पर्श रूप बंध का भंग </td> | <td>जीव के साथ जीव के स्पर्श रूप बंध का भंग </td> | ||
<td>= | <td>=1</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td>पुद्गल के साथ पुद्गल के स्पर्श रूप बंध का भंग</td> | <td>पुद्गल के साथ पुद्गल के स्पर्श रूप बंध का भंग</td> | ||
<td>=1 </td> | <td>=1</td> | ||
</tr> | </tr> | ||
<tr> | <tr> | ||
<td> | <td><span class="GRef"> (गोम्मटसार कर्मकांड/800)</span>। कुल भंग </td> | ||
<td>=65 </td> | <td>=65 </td> | ||
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</table> | </table> | ||
<p class="HindiText" id="1.4.3">3. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.2</p> | <p class="HindiText" id="1.4.3">3. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.2</p> | ||
<p class="HindiText"><span class="GRef"> षट्खंडागम 13/5,3/ | <p class="HindiText"><span class="GRef"> षट्खंडागम 13/5,3/सूत्र 4-33/पृष्ठ 3-36 </span></p> | ||
<p><strong>चार्ट</strong></p> | <p><strong>चार्ट</strong></p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> धवला 13/5,3,24/25/2 </span><span class="PrakritText">एत्थ केवि आइरिया कक्खडादिफासाणं पहाणीकयाणं एगादिसंजोगेहि फासभंगे उप्पायंति, तण्ण घडदे; गुणाणं णिस्सहावणं गुणेहि फासाभावादो। ...अधवा सुत्तस्स देसामासियत्ते... सगंतोक्खित्तासेसविसेसंतराणमट्ठण्णं फासाणं संजोएण दुसद-पंच-वंचासभंगा उप्पाएयव्वा।</span> =<span class="HindiText">यहाँ कितने ही आचार्य प्रधानता को प्राप्त हुए ककर्श आदि स्पर्शों के एक आदि संयोगों द्वारा स्पर्श भंग उत्पन्न कराते हैं; परंतु वे बनते नहीं; क्योंकि गुण निस्वभाव होते हैं, इसलिए उनका अन्य गुणों के साथ स्पर्श नहीं बन सकता।...अथवा सूत्रदेशामर्शक होता है।...अतएव अपने भीतर जितने विशेष प्राप्त होते हैं, उन सबके साथ आठ स्पर्शों के संयोग से दो सौ पचपन भंग उत्पन्न कराने चाहिए।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="1.5"><strong>5. निक्षेप रूप भेदों के लक्षण</strong></p> | <p class="HindiText" id="1.5"><strong>5. निक्षेप रूप भेदों के लक्षण</strong></p> | ||
<span class="GRef"> षट्खंडागम व धवला टीका/13/5,3/सूत्र नं./पृष्ठ नं. </span><p class="PrakritText">'जं दव्वं दव्वेण पुसदि सो सव्वो दव्वफासो णाम। (12/11)' 'जं दव्वमेयक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो एयक्खेत्तफासो णाम (14/16)' एक्कम्हि आगासपदेसे ट्ठिद अणंताणं तपोग्गलक्खंधाणसमवाएण संजोएण वा जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। बहुआणं दव्वाणं अक्कमेण एयक्खेत्तपुसणदुवारेण वा एयक्खेत्तफासो वत्तव्वो। -'जं दव्वमणंतरक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो अणंतरक्खेत्तफासो णाम (16/17)' दुपदेसट्ठिददव्वाणमण्णेहि दोआगासपदेसट्ठि दव्वेहि जो फासो सो अणंतरक्खेत्तफासो णाम।...एवं संते समाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। असमाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो अणंतरखेत्तफासो णाम। कधमणंतरत्तं। समाणासमाणक्खेत्ताणमंतरे खेत्तंतराभावादो। एवमणंतरखेत्तफासपरूवणा गदा।-'जं दव्वदेसं देसेण पुसदि सो सव्वो देसफासो णाम (18/18)' एगस्स दव्वरस देसं अवयवं जदि [देसेण] अण्णदव्वदेसेण अप्पणो अवयवेण पुसदि तो देसफासो त्ति दट्ठव्वो। -जं दव्वं तयं वा णोतयं वा पुसदि सो सव्वो तयफासो णाम (20/19)' एसो तयफासो दव्वफासे अंतब्भावं किण्ण गच्छदे। ण, तय-णोतयाणं खंधम्हि समवेदाणं पुध दव्वत्ताभावादो। खंध-तय-णोतयाणं समूहो दव्वं। ण च एक्कम्हि दव्वे दव्वफासो अत्थि, विरोहादो। ...तयफासो देसफासे किण्ण पविसदि। ण, णाणदव्वविसए देसफासे एगदव्वविसयस्स तयफासस्स पवेसविरोहादो। -जं दव्वं सव्वं सव्वेण फुसदि, तहा परमाणुदव्वमिदि, सो सव्वो सव्वफासो णाम। (22/21)' 'सो अट्ठविहो-कक्खडफासो मउवफासो-गरुवफासो लहुवफासो णिद्धफासो लुक्खफासो सीदफासो उण्हफासो। सो सव्वो फासफासो णाम (24/24)' स्पृश्यत इति स्पर्श: कर्कशादि:। स्पृश्यत्यनेनेति स्पर्शस्त्वगिंद्रियं। तयोर्द्वयो: स्पर्शयो: स्पर्श: स्पर्शस्पर्श:। -'सो अट्ठविहो-णाणावरणीय-दंसणावरणीय-वेयणीय-मोहणीय-आउअ-णामा-गोद-अंतराइय-कम्मफासो। सो सव्वो कम्मफासो णाम (26/26)' अट्ठकम्माणं जीवेण विस्सासोवचएहि य णोकम्मेहि य जो फासो सो दव्वफासे पददि त्ति एत्थ ण वुच्चदे, कम्माणं कम्मेहि जो फासो सो कम्मफासो एत्थं घेत्तव्वो।-'सो पंचविहो-ओरालियसरीरबंधफासो एवं वेउव्वियआहार-तेया कम्मइयसरीरबंधफासो। सो सव्वो बंधफासो णाम। (28/30)' बध्नातीति बंध:। औदारिकशरीरमेव बंध: औदारिकशरीरबंध:। तस्स बंधस्स फासो ओरालियसरीरबंधफासो णाम। एवं सव्वसरीरबंधफासणं पि वत्तव्वं। -'जहा विस कूड-जंत-पंजर-कंदय-वग्गुरादीणि कत्तारो समोद्दियारो य भवियो फुसणदाए णो य पुण ताव तं फुसदि सो सव्वो भवियफासो णाम (30/34)' 'उवजुत्तो पाहुडजाणओ सो सव्वो भावफासो णाम (32/35)</p> | |||
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<li>एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से स्पर्श को प्राप्त होता है वह सब द्रव्य स्पर्श है।12।</li> | <li>एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से स्पर्श को प्राप्त होता है वह सब द्रव्य स्पर्श है।12।</li> | ||
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<li>जो स्पर्श प्राभृत का ज्ञाता उसमें उपयुक्त है वह सब भाव स्पर्श है।32।</li> | <li>जो स्पर्श प्राभृत का ज्ञाता उसमें उपयुक्त है वह सब भाव स्पर्श है।32।</li> | ||
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<span class="GRef"> धवला 4/1,4,1/143-144/3,2 </span><p class="PrakritText">सेसदव्वाणमागासेण सह संजोओ खेत्तफोसणं/143/3/कालदव्वस्स अण्णदव्वेहि जो संजोओ सो कालफोसणं णाम।</p> | |||
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<li>शेष द्रव्यों का आकाश द्रव्य के साथ जो संयोग है, वह क्षेत्र स्पर्शन कहलाता है।</li> | <li>शेष द्रव्यों का आकाश द्रव्य के साथ जो संयोग है, वह क्षेत्र स्पर्शन कहलाता है।</li> |
Latest revision as of 10:16, 8 July 2023
भेद व लक्षण
1. स्पर्श गुण का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/11 स्पृश्यते स्पर्शनमात्रं वा स्पर्श:।
सर्वार्थसिद्धि/2/20/178/9 स्पृश्यत इति स्पर्श:। ...पर्यायप्राधान्यविवक्षायां भावनिर्देश:। स्पर्शनं स्पर्श:। =1. जो स्पर्शन किया जाता है उसे या स्पर्शनमात्र को स्पर्श कहते हैं। 2. द्रव्य की अपेक्षा होने पर कर्म निर्देश होता है। जैसे-जो स्पर्श किया जाता है सो स्पर्श है। ...तथा जहाँ पर्याय की विवक्षा प्रधान रहती है तब भाव निर्देश होता है जैसे स्पर्शन स्पर्श है। (राजवार्तिक/2/20/1/132/31)
धवला 1/1,1,33/237/8 यदा वस्तुप्राधान्येन विवक्षितं तदा इंद्रियेण वस्त्वेव विषयीकृतं भवेद् वस्तुव्यतिरिक्तस्पर्शाद्यभावात् । एतस्यां विवक्षायां स्पृश्यत इति स्पर्शो वस्तु। यदा तु पर्याय: प्राधान्येन विवक्षितस्तदा तस्य ततो भेदोपपत्तेरौदासीन्यावस्थितभावकथनाद्भावसाधनत्वमप्यविरुद्धम् । यथा स्पर्श इति। =जिस समय द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा प्रधानता से वस्तु ही विवक्षित होती है, उस समय इंद्रिय के द्वारा वस्तु का ही ग्रहण होता है, क्योंकि वस्तु को छोड़कर स्पर्शादि धर्म पाये नहीं जाते हैं इसलिए इस विवक्षा में जो स्पर्श किया जाता है उसे स्पर्श कहते हैं, और वह स्पर्श वस्तु रूप ही पड़ता है। तथा जिस समय पर्यायार्थिक नय की प्रधानता से पर्याय विवक्षित होती है, उस समय पर्याय का द्रव्य से भेद होने के कारण उदासीन रूप से अवस्थित भाव का कथन किया जाता है। इसलिए स्पर्श में भाव साधन भी बन जाता है। जैसे स्पर्शन ही स्पर्श है।
2. स्पर्श नामकर्म का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/8 यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम। =जिसके उदय से स्पर्श की उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म है। (राजवार्तिक/811/10/577/14); (धवला 1/5,5,101/364/8); गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/15)
धवला 6/1,9-1,28/55/9 जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जाइपडिणियदो पासो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स पाससण्णा कारणे कज्जुवयारादो। =जिस कर्मस्कंध के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत स्पर्श उत्पन्न होता है, उस कर्म स्कंध की कारण में कार्य के उपचार से स्पर्श यह संज्ञा है।
3. स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/1/8/29/7 तदेव स्पर्शनं त्रिकालगोचरम् । =त्रिकाल विषयक निवास को स्पर्श कहते हैं। (राजवार्तिक/1/8/5/41/30)
धवला 1/1,1,7/गाथा/102/158 अत्थित्तं पुण संतं अत्थित्तस्स य तहेव परिमाणं। पच्चुप्पण्णं खेत्तं अदीद-पदुप्पण्णणं फुसणं।102।
धवला 1/1,1,7/158/5 तेहिंदो वलद्ध-संत-पमाण खेत्ताणं अदीद-काल-विसिट्ठफासं परूवेदि फोसणाणुगमो। =1. अस्तित्व का प्रतिपादन करने वाली प्ररूपणा को सत्प्ररूपणा कहते हैं। जिन पदार्थों के अस्तित्व का ज्ञान हो गया है ऐसे पदार्थों के परिमाण का कथन करने वाली संख्या प्ररूपणा है, वर्तमान क्षेत्र का वर्णन करने वाली क्षेत्र प्ररूपणा है। अतीत स्पर्श और वर्तमान स्पर्श का वर्णन करने वाली स्पर्शन प्ररूपणा है।102। 2. उक्त तीनों अनुयोगों के द्वारा जाने हुए सत् संख्या और क्षेत्ररूप द्रव्यों के अतीतकाल विशिष्ट वर्तमान स्पर्श का स्पर्शनानुयोग वर्णन करता है।
धवला 4/1,4,1/144/8 अस्पर्शि स्पृश्यत इति स्पर्शनम् । =जो भूतकाल में स्पर्श किया है और वर्तमान में स्पर्श किया जा रहा है वह स्पर्शन कहलाता है।
4. स्पर्श के भेद
1. स्पर्श गुण व स्पर्श नामकर्म के भेद
षट्खंडागम 6/1,9,1/सूत्र 40/75 जं तं पासणामकम्मं तं अट्ठविहं, कक्खडणामं मउवणामं गुरुअणामं लहुअणामं णिद्धणामं लुक्खणामं सीदणाम उसुणणामं चेदि।40। =जो स्पर्श नामकर्म है वह आठ प्रकार का है-कर्कशनामकर्म, मृदुकनामकर्म, गुरुकनामकर्म, लघुकनामकर्म, स्निग्धनामकर्म, रूक्षनामकर्म, शीतनामकर्म और उष्णनामकर्म। (षट्खंडागम 13/5,5/सूत्र 113/370); (सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/8); (पंचसंग्रह/प्राकृत/2/4/टीका/48/2); (राजवार्तिक/8/11/10/577/14); (गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/15)
सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/11 सोऽष्टविध:; मृदुकठिनगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षभेदात् ।=कोमल, कठोर, भारी, हलका, गरम, ठंडा, स्निग्ध और रूक्ष के भेद से वह स्पर्श आठ प्रकार का है। (राजवार्तिक 5/23/7/484); (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/885/1); (द्रव्यसंग्रह टीका/7/19); (परमात्मप्रकाश टीका/1/19)
2. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.1
नोट-(नाम, स्थापना आदि भेद=देखें निक्षेप )।
धवला 4/1,4,1/143/2 मिस्सयदव्वफोसणं छण्हं दव्वाणं संजोएण एगूणसट्ठिभेयभिण्णं। =मिश्र द्रव्य स्पर्शन चेतन अचेतन स्वरूप छहों द्रव्यों के संयोग से उनसठ भेदवाला होता है।
विशेषार्थ-मिश्र तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य स्पर्श के सचित्त व अचित्त रूप छह द्रव्यों के 65 संयोगी भंग निम्न प्रकार हैं।
एक संयोगी भंग = छह द्रव्यों का पृथक्-पृथक् ग्रहण करने से | = 6 |
द्विसंयोगी भंग = (6x5) ÷ (1x2)=30/2 | = 15 |
त्रिसंयोगी भंग = (6x5x4) ÷ (1x2x3)=120/6 | = 20 |
चतुसंयोगी भंग = (6x5x4x3) ÷ (1x2x3x4)= 360/24 | = 15 |
पंचसंयोगी भंग = (6x5x4x3x2) ÷ (1x2x3x4x5)= 720/120 | = 6 |
छह संयोगी भंग = (6x5x4x3x2x1) ÷ (1x2x3x4x5x6)= 720/720 | = 1 |
जीव के साथ जीव के स्पर्श रूप बंध का भंग | =1 |
पुद्गल के साथ पुद्गल के स्पर्श रूप बंध का भंग | =1 |
(गोम्मटसार कर्मकांड/800)। कुल भंग | =65 |
3. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.2
षट्खंडागम 13/5,3/सूत्र 4-33/पृष्ठ 3-36
चार्ट
धवला 13/5,3,24/25/2 एत्थ केवि आइरिया कक्खडादिफासाणं पहाणीकयाणं एगादिसंजोगेहि फासभंगे उप्पायंति, तण्ण घडदे; गुणाणं णिस्सहावणं गुणेहि फासाभावादो। ...अधवा सुत्तस्स देसामासियत्ते... सगंतोक्खित्तासेसविसेसंतराणमट्ठण्णं फासाणं संजोएण दुसद-पंच-वंचासभंगा उप्पाएयव्वा। =यहाँ कितने ही आचार्य प्रधानता को प्राप्त हुए ककर्श आदि स्पर्शों के एक आदि संयोगों द्वारा स्पर्श भंग उत्पन्न कराते हैं; परंतु वे बनते नहीं; क्योंकि गुण निस्वभाव होते हैं, इसलिए उनका अन्य गुणों के साथ स्पर्श नहीं बन सकता।...अथवा सूत्रदेशामर्शक होता है।...अतएव अपने भीतर जितने विशेष प्राप्त होते हैं, उन सबके साथ आठ स्पर्शों के संयोग से दो सौ पचपन भंग उत्पन्न कराने चाहिए।
5. निक्षेप रूप भेदों के लक्षण
षट्खंडागम व धवला टीका/13/5,3/सूत्र नं./पृष्ठ नं.
'जं दव्वं दव्वेण पुसदि सो सव्वो दव्वफासो णाम। (12/11)' 'जं दव्वमेयक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो एयक्खेत्तफासो णाम (14/16)' एक्कम्हि आगासपदेसे ट्ठिद अणंताणं तपोग्गलक्खंधाणसमवाएण संजोएण वा जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। बहुआणं दव्वाणं अक्कमेण एयक्खेत्तपुसणदुवारेण वा एयक्खेत्तफासो वत्तव्वो। -'जं दव्वमणंतरक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो अणंतरक्खेत्तफासो णाम (16/17)' दुपदेसट्ठिददव्वाणमण्णेहि दोआगासपदेसट्ठि दव्वेहि जो फासो सो अणंतरक्खेत्तफासो णाम।...एवं संते समाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। असमाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो अणंतरखेत्तफासो णाम। कधमणंतरत्तं। समाणासमाणक्खेत्ताणमंतरे खेत्तंतराभावादो। एवमणंतरखेत्तफासपरूवणा गदा।-'जं दव्वदेसं देसेण पुसदि सो सव्वो देसफासो णाम (18/18)' एगस्स दव्वरस देसं अवयवं जदि [देसेण] अण्णदव्वदेसेण अप्पणो अवयवेण पुसदि तो देसफासो त्ति दट्ठव्वो। -जं दव्वं तयं वा णोतयं वा पुसदि सो सव्वो तयफासो णाम (20/19)' एसो तयफासो दव्वफासे अंतब्भावं किण्ण गच्छदे। ण, तय-णोतयाणं खंधम्हि समवेदाणं पुध दव्वत्ताभावादो। खंध-तय-णोतयाणं समूहो दव्वं। ण च एक्कम्हि दव्वे दव्वफासो अत्थि, विरोहादो। ...तयफासो देसफासे किण्ण पविसदि। ण, णाणदव्वविसए देसफासे एगदव्वविसयस्स तयफासस्स पवेसविरोहादो। -जं दव्वं सव्वं सव्वेण फुसदि, तहा परमाणुदव्वमिदि, सो सव्वो सव्वफासो णाम। (22/21)' 'सो अट्ठविहो-कक्खडफासो मउवफासो-गरुवफासो लहुवफासो णिद्धफासो लुक्खफासो सीदफासो उण्हफासो। सो सव्वो फासफासो णाम (24/24)' स्पृश्यत इति स्पर्श: कर्कशादि:। स्पृश्यत्यनेनेति स्पर्शस्त्वगिंद्रियं। तयोर्द्वयो: स्पर्शयो: स्पर्श: स्पर्शस्पर्श:। -'सो अट्ठविहो-णाणावरणीय-दंसणावरणीय-वेयणीय-मोहणीय-आउअ-णामा-गोद-अंतराइय-कम्मफासो। सो सव्वो कम्मफासो णाम (26/26)' अट्ठकम्माणं जीवेण विस्सासोवचएहि य णोकम्मेहि य जो फासो सो दव्वफासे पददि त्ति एत्थ ण वुच्चदे, कम्माणं कम्मेहि जो फासो सो कम्मफासो एत्थं घेत्तव्वो।-'सो पंचविहो-ओरालियसरीरबंधफासो एवं वेउव्वियआहार-तेया कम्मइयसरीरबंधफासो। सो सव्वो बंधफासो णाम। (28/30)' बध्नातीति बंध:। औदारिकशरीरमेव बंध: औदारिकशरीरबंध:। तस्स बंधस्स फासो ओरालियसरीरबंधफासो णाम। एवं सव्वसरीरबंधफासणं पि वत्तव्वं। -'जहा विस कूड-जंत-पंजर-कंदय-वग्गुरादीणि कत्तारो समोद्दियारो य भवियो फुसणदाए णो य पुण ताव तं फुसदि सो सव्वो भवियफासो णाम (30/34)' 'उवजुत्तो पाहुडजाणओ सो सव्वो भावफासो णाम (32/35)
- एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से स्पर्श को प्राप्त होता है वह सब द्रव्य स्पर्श है।12।
- जो द्रव्य एक क्षेत्र के साथ स्पर्श करता है वह सब एक क्षेत्र स्पर्श है।14। एक आकाश प्रदेश में स्थित अनंतानंत पुद्गल स्कंधों का समवाय संबंध या संयोग संबंध द्वारा जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्र स्पर्श कहलाता है। अथवा बहुत द्रव्यों का युगपत् एक क्षेत्र के स्पर्शन द्वारा एक क्षेत्र स्पर्श कहना चाहिए।
- जो द्रव्य अनंतर द्रव्य के साथ स्पर्श करता है वह सब अनंतर क्षेत्र स्पर्श है।16। दो प्रदेशों में स्थित द्रव्यों का दो आकाश के प्रदेशों में स्थित अन्य द्रव्यों के साथ जो स्पर्श होता है वह अनंतर क्षेत्र स्पर्श है।...इस स्थिति में (एक शब्द संख्यावाची नहीं समानवाची है) समान अवगाहना वाले स्कंधों का जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्र स्पर्श है और असमान अवगाहना वाले स्कंधों का जो स्पर्श होता है वह अनंतर क्षेत्र है। क्योंकि समान और असमान क्षेत्रों के मध्य में अन्य क्षेत्र नहीं उपलब्ध होता, इसलिए इसे अनंतरपना प्राप्त है।
- जो द्रव्य एकदेश एकदेश के साथ स्पर्श करता है वह सब देश स्पर्श है।18। एक द्रव्य का देश अर्थात् अवयव यदि अन्य द्रव्य के देश अर्थात् उसके अवयव के साथ स्पर्श करता है तो वह देश स्पर्श जानना चाहिए। (दो परमाणुओं का दो प्रदेशावगाही स्कंध बनने में जो स्पर्श होता है वही देश स्पर्श है।)
- जो द्रव्य त्वचा या नोत्वचा को स्पर्श करता है वह सब त्वक्स्पर्श है।20। प्रश्न-यह त्वक् स्पर्श द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं अंतर्भाव को प्राप्त होता ? उत्तर-नहीं, क्योंकि त्वचा और नोत्वचा स्कंध में समवेत है, अत: उन्हें पृथक् द्रव्य नहीं माना जा सकता। स्कंध, त्वचा और नोत्वचा का समुदाय द्रव्य है। पर एक द्रव्य में द्रव्य स्पर्श नहीं बनता, क्योंकि ऐसा मानने में विरोध आता है। प्रश्न-त्वक् स्पर्श देशस्पर्श में क्यों नहीं अंतर्भूत होता है ? उत्तर-नहीं, क्योंकि नाना द्रव्यों को विषय करने वाले देश स्पर्श में एक द्रव्य को विषय करने वाले त्वक् स्पर्श का अंतर्भाव मानने में विरोध आता है।
- जो द्रव्य सबका सब सर्वात्मना स्पर्श करता है, यथा परमाणु द्रव्य, वह सब सर्वस्पर्श है।22।
- स्पर्शस्पर्श आठ प्रकार का है-कर्कशस्पर्श, मृदुस्पर्श, गुरुस्पर्श, लघुस्पर्श, स्निग्धस्पर्श, रूक्षस्पर्श, शीतस्पर्श और उष्णस्पर्श है वह सब स्पर्शस्पर्श है।24। जो स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है, यथा कर्कश आदि। जिसके द्वारा स्पर्श किया जाय वह स्पर्श है, यथा त्वचा इंद्रिय। इन दोनों स्पर्शों का स्पर्श स्पर्शस्पर्श कहलाता है।
- वह आठ प्रकार का है-ज्ञानावरणीय कर्मस्पर्श, दर्शनावरणीय कर्मस्पर्श, वेदनीय कर्मस्पर्श, मोहनीय कर्मस्पर्श, आयुकर्मस्पर्श, गोत्र कर्मस्पर्श और अंतराय कर्मस्पर्श। वह सब कर्मस्पर्श है।26। आठ कर्मों का जीव के साथ, विस्रसोपचयों के साथ और नोकर्मों के साथ जो स्पर्श होता है वह सब द्रव्य स्पर्श में अंतर्भूत होता है; इसलिए वह यहाँ नहीं कहा गया है। किंतु कर्मों का कर्मों के साथ जो स्पर्श होता है वह कर्मस्पर्श है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
- वह पाँच प्रकार का है-औदारिक शरीर बंधस्पर्श। इसी प्रकार वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर बंधस्पर्श। वह सब बंधस्पर्श है।28। जो बाँधता है वह बंध है, उस बंध का स्पर्श औदारिक शरीर बंध स्पर्श है। इसी प्रकार सर्व शरीर बंध स्पर्शों का भी कथन करना चाहिए।
- विष, कूट, यंत्र, पिंजरा, कंदक और पशु को बाँधने का जाल आदि तथा इनके करने वाले और इन्हें इच्छित स्थानों में रखने वाले स्पर्शन के योग्य होंगे परंतु अभी उन्हें स्पर्श नहीं करते; वह सब भव्य स्पर्श है।30।
- जो स्पर्श प्राभृत का ज्ञाता उसमें उपयुक्त है वह सब भाव स्पर्श है।32।
धवला 4/1,4,1/143-144/3,2
सेसदव्वाणमागासेण सह संजोओ खेत्तफोसणं/143/3/कालदव्वस्स अण्णदव्वेहि जो संजोओ सो कालफोसणं णाम।
- शेष द्रव्यों का आकाश द्रव्य के साथ जो संयोग है, वह क्षेत्र स्पर्शन कहलाता है।
- कालद्रव्य का जो अन्य द्रव्यों के साथ संयोग है उसका नाम कालस्पर्शन है।