जंबू: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) एक चैत्यवृक्ष । यह तीर्थंकर विमलनाथ का दीक्षावृक्ष था । इसी वक्ष के कारण इस द्वीप का नाम जंबूद्वीप हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 5.184, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20.49 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) एक चैत्यवृक्ष । यह तीर्थंकर विमलनाथ का दीक्षावृक्ष था । इसी वक्ष के कारण इस द्वीप का नाम जंबूद्वीप हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 5.184, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#49|पद्मपुराण - 20.49]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) रत्नपुर नगर निवासी सत्यक ब्राह्मण की स्त्री । इसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कपिल के साथ किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.328-329 </span></p> | <p id="2">(2) रत्नपुर नगर निवासी सत्यक ब्राह्मण की स्त्री । इसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कपिल के साथ किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.328-329 </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक फल (जामुन) । भरत चक्रवर्ती ने इस फल से तथा कपित्थ आदि अन्य फलों से वृषभदेव की पूजा की थी । <span class="GRef"> महापुराण 17. 252 </span></p> | <p id="3">(3) एक फल (जामुन) । भरत चक्रवर्ती ने इस फल से तथा कपित्थ आदि अन्य फलों से वृषभदेव की पूजा की थी । <span class="GRef"> महापुराण 17. 252 </span></p> |
Revision as of 22:20, 17 November 2023
(1) एक चैत्यवृक्ष । यह तीर्थंकर विमलनाथ का दीक्षावृक्ष था । इसी वक्ष के कारण इस द्वीप का नाम जंबूद्वीप हुआ । महापुराण 5.184, पद्मपुराण - 20.49
(2) रत्नपुर नगर निवासी सत्यक ब्राह्मण की स्त्री । इसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कपिल के साथ किया था । महापुराण 62.328-329
(3) एक फल (जामुन) । भरत चक्रवर्ती ने इस फल से तथा कपित्थ आदि अन्य फलों से वृषभदेव की पूजा की थी । महापुराण 17. 252
(5) तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के पश्चात् बासठ वर्ष में हुए गौतम आदि तीन केवलियों में अंतिम केवली । इन तीनों में सर्वप्रथम इंद्रभूति (गौतम) गणधर ने वर्धमान जिनेंद्र के मुख से सुनकर श्रुत को धारण किया । इस श्रुत को गौतम से सुधर्माचार्य ने और फिर उनसे इन्होंने धारण किया । महापुराण 1 199, 2.138-140 हरिवंशपुराण 1. 60 वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-42 चंपा नगरी के सेठ अर्हद्दास की पत्नी जिनदासी के गर्भ में आने पर जिनदासी ने पांच स्वप्न देखे थे । वे हैं― 1. हाथी 2. सरोवर 3. चावलों का खेत 4. निर्धूम अग्नि-ज्वाला और 5. देवकुमारों के द्वारा लाये गये जामुनफल । विपुलाचल पर्वत पर गणधर गौतम के आने का समाचार सुनकर चेलिनी के पुत्र कुणिक के परिवार के साथ ये भी विरक्त हो दीक्षा के लिए उत्सुक हुए, किंतु भाइयों के साथ दीक्षित होने का आश्वासन पाकर ये घर लौट आये तथा इन्होंने पद्मश्री, कनकश्री, विनयश्री और रूपश्री कन्याओं के साथ विवाह किया था । विवाह करके भी ये अपनी पत्नियों से आकृष्ट नहीं हुए । विद्युच्चोर की इनकी मां से भेंट हुई । इन्हें विरक्ति से राग में लाने हेतु इनकी माँ ने मनचाहा धन देने का आश्वासन दिया । चोर ने इन्हें राग में फँसाना चाहा किंतु ये उसे ही अपनी ओर आकृष्ट करते रहे स्वयं रागी नहीं बने । माता, पत्नियाँ और विद्युच्चोर सभी शरीर और सांसारिक भोगों से विरक्त हो गये और विपुलाचल पर पहुँच कर सुधर्माचार्य गणधर से संयमी हुए । महावीर का निर्वाण होने के बाद ये श्रुतकेवली तथा सुधर्माचार्य के मोक्ष चले जाने पर केवली हुए । इनका भव नाम का एक शिष्य था । वह इनके साथ रहा । ये भिन्न-भिन्न स्थानों में विहार करते हुए चालीस वर्ष तक धर्मोपदेश देते रहे । महापुराण 76.31-121, 518-519, हरिवंशपुराण 1.60