अकाम निर्जरा: Difference between revisions
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<li class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5"> अकाम निर्जरा का लक्षण</strong></span><br><span class="GRef"> (सर्वार्थसिद्धि/6/20/335/10) </span><span class="SanskritText">अकामनिर्जरा अकामश्चारकनिरोधबंधनबद्धेषु क्षुत्तृष्णानिरोधब्रह्मचर्यभूशय्यामलधारणपरितापादि:। अकामेन निर्जरा अकामनिर्जरा।</span> =<span class="HindiText">चारक में रोक रखने पर या रस्सी आदिसे बाँध रखने पर जो भूख-प्यास सहनी पड़ती है, ब्रह्मचर्य पालना पड़ता है, भूमि पर सोना पड़ता है, मल-मूत्र को रोकना पड़ता है और संताप आदि होता है, ये सब अकाम हैं और इससे जो निर्जरा होती है वह अकामनिर्जरा है। <span class="GRef">( राजवार्तिक/6/20/1/527/19 )</span></span> <span class="GRef"> (राजवार्तिक/6/12/7/522/28) </span><span class="SanskritText">विषयानर्थनिवृत्तिं चात्माभिप्रायेणाकुर्वत: पारतंत्र्याद्भोगोपभोगनिरोधोऽकामनिर्जरा। </span>=<span class="HindiText">अपने अभिप्राय से न किया गया भी विषयों की निवृत्ति या त्याग तथा परतंत्रता के कारण भोग-उपभोग का निरोध होने पर उसे शांति से सह जाना अकाम निर्जरा है। <span class="GRef">( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/548/717/23 )</span></span></li><p class="HindiText">- देखें [[ निर्जरा#1.5 | निर्जरा1.5 ]]।</p> | |||
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> <big>निष्काम भाव से कष्ट सहते हुए कर्मी का क्षय करना । यह देवयोनि की प्राप्ति का एक कारण है । ऐसी निर्जरा करने वाले जीव चारों प्रकार के देवों में कोई भी देव होकर यथायोग्य ऋद्धियों के धारी होते हैं ।</big><big></big> <span class="GRef"> ([[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_14#47|पद्मपुराण - 14.47-48]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_64#103|पद्मपुराण - 64.103]]) </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
(सर्वार्थसिद्धि/6/20/335/10) अकामनिर्जरा अकामश्चारकनिरोधबंधनबद्धेषु क्षुत्तृष्णानिरोधब्रह्मचर्यभूशय्यामलधारणपरितापादि:। अकामेन निर्जरा अकामनिर्जरा। =चारक में रोक रखने पर या रस्सी आदिसे बाँध रखने पर जो भूख-प्यास सहनी पड़ती है, ब्रह्मचर्य पालना पड़ता है, भूमि पर सोना पड़ता है, मल-मूत्र को रोकना पड़ता है और संताप आदि होता है, ये सब अकाम हैं और इससे जो निर्जरा होती है वह अकामनिर्जरा है। ( राजवार्तिक/6/20/1/527/19 ) (राजवार्तिक/6/12/7/522/28) विषयानर्थनिवृत्तिं चात्माभिप्रायेणाकुर्वत: पारतंत्र्याद्भोगोपभोगनिरोधोऽकामनिर्जरा। =अपने अभिप्राय से न किया गया भी विषयों की निवृत्ति या त्याग तथा परतंत्रता के कारण भोग-उपभोग का निरोध होने पर उसे शांति से सह जाना अकाम निर्जरा है। ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/548/717/23 )
- देखें निर्जरा1.5 ।
पुराणकोष से
निष्काम भाव से कष्ट सहते हुए कर्मी का क्षय करना । यह देवयोनि की प्राप्ति का एक कारण है । ऐसी निर्जरा करने वाले जीव चारों प्रकार के देवों में कोई भी देव होकर यथायोग्य ऋद्धियों के धारी होते हैं । (पद्मपुराण - 14.47-48,पद्मपुराण - 64.103)