औपशमिक सम्यक्त्व: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> सम्यग्दर्शन का एक भेद । यह दर्शनमोहनीय कर्म के उपशमन से उत्पन्न होता है । इससे जीव आदि पदार्थों का यथार्थ स्वरूप विदित होता है । <span class="GRef"> महापुराण 9.117, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3. 143-144 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> सम्यग्दर्शन का एक भेद । यह दर्शनमोहनीय कर्म के उपशमन से उत्पन्न होता है । इससे जीव आदि पदार्थों का यथार्थ स्वरूप विदित होता है । <span class="GRef"> महापुराण 9.117, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_3#143|हरिवंशपुराण - 3.143-144]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
सम्यग्दर्शन का एक भेद । यह दर्शनमोहनीय कर्म के उपशमन से उत्पन्न होता है । इससे जीव आदि पदार्थों का यथार्थ स्वरूप विदित होता है । महापुराण 9.117, हरिवंशपुराण - 3.143-144