धर्मचक्रव्रत: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> वृहद् विधि‒धर्मचक्र के | <li class="HindiText"> वृहद् विधि‒धर्मचक्र के 1000 आरों की अपेक्षा एक उपवास एक पारणा के क्रम से 1000 उपवास करे। आदि अंत में एक एक बेला पृथक् करें। इस प्रकार कुछ 2004 दिनों में (5 वर्ष में) यह व्रत पूरा होता है। त्रिकाल नमस्कार मंत्र का जाप्य करे। <span class="GRef">( हरिवंशपुराण/34/124 )</span>, </li> | ||
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> एक व्रत । इसमें धर्मचक्र के एक हजार आरों की अपेक्षा से एक उपवास और एक पारणा के कम से एक हजार उपवास किये जाते हैं । आदि और अंत में एक-एक बेला पृथक् रूप से किया जाता है । <span class="GRef"> महापुराण 62. 497 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#124|हरिवंशपुराण - 34.124]] </span></p> | |||
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Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
इस व्रत की तीन प्रकार विधि है—वृहद्, मध्यम, व लघु
- वृहद् विधि‒धर्मचक्र के 1000 आरों की अपेक्षा एक उपवास एक पारणा के क्रम से 1000 उपवास करे। आदि अंत में एक एक बेला पृथक् करें। इस प्रकार कुछ 2004 दिनों में (5 वर्ष में) यह व्रत पूरा होता है। त्रिकाल नमस्कार मंत्र का जाप्य करे। ( हरिवंशपुराण/34/124 ),
- मध्यम विधि‒1010 दिन तक प्रतिदिन एकाशना करे। त्रिकाल नमस्कार मंत्र का जाप्य करे। (व्रतविधान संग्रह/पृ.163); (नवलसाह कृत वर्द्धमान पुराण)
- लघु विधि‒क्रमश: 1,2,3,4,5,1 इस प्रकार कुल 16 उपवास करे। बीच के स्थानों में सर्वत्र एक-एक पारणा करे। त्रिकाल नमस्कार मंत्र का जाप्य करे। (व्रतविधान संग्रह/पृ.163); (किशनसिंह क्रियाकोश)।
पुराणकोष से
एक व्रत । इसमें धर्मचक्र के एक हजार आरों की अपेक्षा से एक उपवास और एक पारणा के कम से एक हजार उपवास किये जाते हैं । आदि और अंत में एक-एक बेला पृथक् रूप से किया जाता है । महापुराण 62. 497 हरिवंशपुराण - 34.124