याज्ञिकमत: Difference between revisions
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Revision as of 23:25, 5 October 2014
गो. जी./जी. प्र./६८/१७८/९ संसारिजीवस्य मुक्तिर्नास्ति। = संसारी जीव की कभी मुक्ति नहीं होती है, ऐसा याज्ञिक मत वाले मानते हैं।