व्यसन: Difference between revisions
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<p><span class="GRef">पद्मनंदी पंचविंशतिका/1/16, 32</span><span class="SanskritText"> द्यूतमांससुरावेश्याखेटचौर्यपरांगनाः । महापापानि सप्तेति व्यसनानि त्यजेद्बुधः ।16। न परमियंति भवंति व्यवसनान्यपराण्यपि प्रभूतानि । त्यक्त्वा सत्पथमपथप्रवृत्तयः क्षुद्रबुद्धीनाम् ।32।</span> = </p> | |||
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<li | <li class="HindiText"> जूआ, मांस, मद्य, वेश्या, शिकार, चोरी और परस्त्री, इस प्रकार ये सात महापापरूप व्यसन हैं । बुद्धिमान् पुरुष को इन सबका त्याग करना चाहिए । <span class="GRef">(पद्मनंदी पंचविंशतिका/6/10)</span>; <span class="GRef">( वसुनंदी श्रावकाचार/59 )</span>; <span class="GRef">( चारित्तपाहुड़/टीका/21/43/पर उद्धृत )</span>; <span class="GRef">( लाटी संहिता/2/113 )</span> । </span></li> | ||
<li | <li class="HindiText"> केवल इतने ही व्यसन नहीं हैं, किंतु दूसरे भी बहुत से हैं । कारण कि अल्पमति पुरुष समीचीन मार्ग को छोड़कर कुत्सित मार्ग में प्रवृत्त हुआ करते हैं ।32। <br /> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पद्मनंदी पंचविंशतिका/1/16, 32 द्यूतमांससुरावेश्याखेटचौर्यपरांगनाः । महापापानि सप्तेति व्यसनानि त्यजेद्बुधः ।16। न परमियंति भवंति व्यवसनान्यपराण्यपि प्रभूतानि । त्यक्त्वा सत्पथमपथप्रवृत्तयः क्षुद्रबुद्धीनाम् ।32। =
- जूआ, मांस, मद्य, वेश्या, शिकार, चोरी और परस्त्री, इस प्रकार ये सात महापापरूप व्यसन हैं । बुद्धिमान् पुरुष को इन सबका त्याग करना चाहिए । (पद्मनंदी पंचविंशतिका/6/10); ( वसुनंदी श्रावकाचार/59 ); ( चारित्तपाहुड़/टीका/21/43/पर उद्धृत ); ( लाटी संहिता/2/113 ) ।
- केवल इतने ही व्यसन नहीं हैं, किंतु दूसरे भी बहुत से हैं । कारण कि अल्पमति पुरुष समीचीन मार्ग को छोड़कर कुत्सित मार्ग में प्रवृत्त हुआ करते हैं ।32।
- अन्य संबंधित विषय
- वेश्या व्यसन का निषेध ।–देखें ब्रह्मचर्य - 3 ।
- परस्त्री गमन निषेध ।–देखें ब्रह्मचर्य - 3 ।
- चोरी व्यसन ।–देखें अस्तेय ।
- द्यूत आदि अन्य व्यसन ।–देखें वह वह नाम ।
- वेश्या व्यसन का निषेध ।–देखें ब्रह्मचर्य - 3 ।
पुराणकोष से
असत्प्रवृत्तियों में रति । ये सात होते हैं । उनके नाम है—जुआ, मांस, मद्य, वेश्यागमन, शिकार, चोरी और परस्त्रीगमन । इनमें मद्य, मांस और शिकार क्रोधज तथा जुआ, चोरी, वेश्यागमन और परस्त्रीरमण कामज व्यसन है । महापुराण 59.75, 62.441