सचित्तत्यागप्रतिमा: Difference between revisions
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<p> श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं में पाँचवी प्रतिमा । इस प्रतिमा का धारी जीव-दया के लिए फल, अप्रासुक जल, बीज, पत्र आदि सचित्त वस्तुओं का त्याग कर देता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 18.61 सचित्तनिक्षेप― अतिथिसंविभाग व्रत के पाँच अतिचारो में प्रथम अतिचार । हरे पत्तों पर रखकर आहार देना या लेना सचित-निक्षेप-अतिचार कहलाता है । हरिवंशपुराण 58.183</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं में पाँचवी प्रतिमा । इस प्रतिमा का धारी जीव-दया के लिए फल, अप्रासुक जल, बीज, पत्र आदि सचित्त वस्तुओं का त्याग कर देता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.61 </span>सचित्तनिक्षेप― अतिथिसंविभाग व्रत के पाँच अतिचारो में प्रथम अतिचार । हरे पत्तों पर रखकर आहार देना या लेना सचित-निक्षेप-अतिचार कहलाता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#183|हरिवंशपुराण - 58.183]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं में पाँचवी प्रतिमा । इस प्रतिमा का धारी जीव-दया के लिए फल, अप्रासुक जल, बीज, पत्र आदि सचित्त वस्तुओं का त्याग कर देता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 18.61 सचित्तनिक्षेप― अतिथिसंविभाग व्रत के पाँच अतिचारो में प्रथम अतिचार । हरे पत्तों पर रखकर आहार देना या लेना सचित-निक्षेप-अतिचार कहलाता है । हरिवंशपुराण - 58.183