स्मृति: Difference between revisions
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<p><span class=" | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/1/13/106/4 </span><span class="SanskritText">स्मरणं स्मृति:।</span> =<span class="HindiText">स्मरण करना स्मृति है। <span class="GRef">( धवला 13/5,5,41/244/3 )</span>।</span></p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="GRef"> धवला 13/5,5,63/333/4 </span><span class="PrakritText">दिट्ठ-सुदाणुभूदट्ठविसयणाणविसेसिदजीवो सदी णाम।</span> =<span class="HindiText">दृष्ट, श्रुत और अनुभूत अर्थ को विषय करने वाले ज्ञान से विशेषित जीव का नाम स्मृति है।</span></p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="GRef"> महापुराण/21/229 </span><span class="SanskritText">स्मृतिर्जीवादितत्त्वानां याथात्म्यानुस्मृति: स्मृता। गुणानुस्मरणं वा स्यात् सिद्धार्हत्परमेष्ठिनाम् ।</span> =<span class="HindiText">जीवादि तत्त्वों का अथवा अर्हत् सिद्ध का गुणस्मरण स्मृति है।</span></p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="GRef"> परीक्षामुख/3/3-4 </span><span class="SanskritText">संस्कारोद्बोधनिबंधना तदित्याकारा स्मृति:।3। स देवदत्तो यथा।4।</span> =<span class="HindiText">पूर्व संस्कार की प्रकटता से 'वह देवदत्त' इस प्रकार के स्मरण को स्मृतिज्ञान कहते हैं।3-4। <span class="GRef">( न्यायदीपिका/3/4/53/9 ); (स्याद्वाद मंजरी/28/321/12)</span></span></p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="GRef"> न्यायदीपिका/3/8/56/3 </span><span class="SanskritText">तत्तोल्लेखिज्ञानं स्मरणम् ।</span> =<span class="HindiText">'वह' का उल्लेखी ज्ञान स्मरण है। | ||
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<li class="HindiText">स्मृति व प्रत्यभिज्ञान में अंतर-देखें [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान - 3]]।</li> | <li class="HindiText">स्मृति व प्रत्यभिज्ञान में अंतर-देखें [[ मतिज्ञान#3.5 | मतिज्ञान - 3.5]]।</li> | ||
<li class="HindiText">स्मृति आदि ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम व स्मृति आदि भेदों की सार्थकता की सिद्धि-देखें [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान - 3]]।</li> | <li class="HindiText">स्मृति आदि ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम व स्मृति आदि भेदों की सार्थकता की सिद्धि-देखें [[ मतिज्ञान#3 | मतिज्ञान - 3]]।</li> | ||
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<p> जीव आदि तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप का स्मरण । <span class="GRef"> महापुराण 21. 229 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जीव आदि तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप का स्मरण । <span class="GRef"> महापुराण 21. 229 </span></p> | ||
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Latest revision as of 16:25, 28 February 2024
सिद्धांतकोष से
- देखें मतिज्ञान - 1.2, मति, स्मृति, चिंता, संज्ञा और अभिनिबोध ये एकार्थवाची हैं।
सर्वार्थसिद्धि/1/13/106/4 स्मरणं स्मृति:। =स्मरण करना स्मृति है। ( धवला 13/5,5,41/244/3 )।
धवला 13/5,5,63/333/4 दिट्ठ-सुदाणुभूदट्ठविसयणाणविसेसिदजीवो सदी णाम। =दृष्ट, श्रुत और अनुभूत अर्थ को विषय करने वाले ज्ञान से विशेषित जीव का नाम स्मृति है।
महापुराण/21/229 स्मृतिर्जीवादितत्त्वानां याथात्म्यानुस्मृति: स्मृता। गुणानुस्मरणं वा स्यात् सिद्धार्हत्परमेष्ठिनाम् । =जीवादि तत्त्वों का अथवा अर्हत् सिद्ध का गुणस्मरण स्मृति है।
परीक्षामुख/3/3-4 संस्कारोद्बोधनिबंधना तदित्याकारा स्मृति:।3। स देवदत्तो यथा।4। =पूर्व संस्कार की प्रकटता से 'वह देवदत्त' इस प्रकार के स्मरण को स्मृतिज्ञान कहते हैं।3-4। ( न्यायदीपिका/3/4/53/9 ); (स्याद्वाद मंजरी/28/321/12)
न्यायदीपिका/3/8/56/3 तत्तोल्लेखिज्ञानं स्मरणम् । ='वह' का उल्लेखी ज्ञान स्मरण है।
- स्मृति व प्रत्यभिज्ञान में अंतर-देखें मतिज्ञान - 3.5।
- स्मृति आदि ज्ञानों की उत्पत्ति का क्रम व स्मृति आदि भेदों की सार्थकता की सिद्धि-देखें मतिज्ञान - 3।
पुराणकोष से
जीव आदि तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप का स्मरण । महापुराण 21. 229