प्रवचनसार - गाथा 245 - तात्पर्य-वृत्ति: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:55, 23 April 2024
समणा सुद्धुवजुत्ता सुहोवजुत्ता य होंति समयम्हि । (245)
तेसु वि सुद्धुवजुत्ता अणासवा सासवा सेसा ॥285॥
अर्थ:
[समये] शास्त्र में (ऐसा कहा है कि), [शुद्धोपयुक्ताः श्रमणाः] शुद्धोपयोगी वे श्रमण हैं, [शुभोपयुक्ताः च भवन्ति] शुभोपयोगी भी श्रमण होते हैं; [तेषु अपि] उनमें भी [शुद्धोपयुक्ताः अनास्रवाः] शुद्धोपयोगी निरास्रव हैं, [शेषाः सास्रवाः] शेष सास्रव हैं, (अर्थात् शुभोपयोगी आस्रव सहित हैं ।) ॥२४५॥
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ शुभोपयोगिनांसास्रवत्वाद्वयवहारेण श्रमणत्वं व्यवस्थापयति --
संति विद्यन्ते । क्व । समयम्हि समये परमागमे । केसन्ति । समणा श्रमणास्तपोधनाः । किंविशिष्टाः । सुद्धुवजुत्ता शुद्धोपयोगयुक्ताः शुद्धोपयोगिन इत्यर्थः । सुहोवजुत्ता य न केवलं शुद्धोपयोगयुक्ताः, शुभोपयोगयुक्ताश्र्च । चकारोऽत्र अन्वाचयार्थे गौणार्थे ग्राह्यः । तत्र दृष्टान्तः — यथा निश्चयेन शुद्धबुद्धैकस्वभावाः सिद्धजीवा एव जीवा भण्यते, व्यवहारेणचतुर्गतिपरिणता अशुद्धजीवाश्च जीवा इति; तथा शुद्धोपयोगिनां मुख्यत्वं, शुभोपयोगिनां तु चकारसमुच्चयव्याख्यानेन गौणत्वम् । कस्माद्गौणत्वं जातमिति चेत् । तेसु वि सुद्धुवजुत्ता अणासवा सासवासेसा तेष्वपि मध्ये शुद्धोपयोगयुक्ता अनास्रवाः, शेषाः सास्रवा इति यतः कारणात् । तद्यथा — निज-शुद्धात्मभावनाबलेन समस्तशुभाशुभसंकल्पविक ल्परहितत्वाच्छुद्धोपयोगिनो निरास्रवा एव, शेषाः शुभोपयोगिनो मिथ्यात्वविषयकषायरूपाशुभास्रवनिरोधेऽपि पुण्यास्रवसहिता इति भावः ॥२८५॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
[संति] हैं । कहाँ हैं? [समयम्हि] परमागम में हैं । कौन हैं परमागम में ? [समणा] मुनि परमागम में हैं । वे किस विशेषता वाले हैं ? [सुद्धवजुत्ता] वे शुद्धोपयोग से युक्त शुद्धोपयोगी हैं- ऐसा अर्थ है । [सुहोवजुत्ता य] न केवल शुद्धोपयोग युक्त हैं बल्कि शुभोपयोग युक्त भी हैं । यहाँ 'चकार'-'च' शब्द अन्वाचय अर्थ में अर्थात् गौण अर्थ में ग्रहण करना चाहिये । इस प्रसंग में दृष्टान्त देते है - जैसे निश्चय से शुद्ध-बुद्ध एक स्वभावी सिद्ध जीव ही जीव कहे जाते हैं और व्यवहार से चतुर्गति परिणत अशुद्ध जीव जीव हैं उसीप्रकार शुद्धोपयोगियों की मुख्यता तथा चकार द्वारा समुच्चय व्याख्यान होने से शुभोपयोगियों की गौणता है । गौणता कैसे उत्पन्न हुई? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैं - [तेसु वि सुद्धवजुत्ता सासवा सेसा] उनमें से भी शुद्धोपयोग-युक्त अनास्रव हैं, शेष सास्रव हैं - इस कारण उनमें गौणता है ।
वह इसप्रकार -- अपने शुद्धात्मा के बल से, सम्पूर्ण शुभ-अशुभ सम्बन्धी संकल्प-विकल्प रहित होने के कारण, शुद्धोपयोगी निरास्रव ही हैं शेष शुभोपयोगी मिथ्यात्व, विषय-कषाय रूप अशुभ आस्रव का निरोध होने पर भी पुण्यास्रव सहित हैं -- ऐसा भाव है ॥२८५॥