पद्मनंदि: Difference between revisions
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दिगम्बर जैन आम्नाय में पद्मनन्दि नाम के अनेकों आचार्य हुए हैं।
- कुन्दकुन्द का अमर नाम (समय वि.184-239 (ई. 930-1053)। देखें - कुन्दकुन्द। जै ./2/86)
- नन्दि संघ के देशीयगण में त्रैकाल्य योगी के शिष्य और कुलभूषण के गुरु थे। प्रमेयकमल मार्त्तण्ड के कर्त्ता प्रभाचन्द्र नं. 4 इनकेसहधर्मा तथा विद्या शिष्य थे। आविद्धकरण तथा कौमारदेव इनके अपर नाम हैं। समय—ई0 930-1053। (देखें - इतिहास /7/5)। प0 वि0/प्र0 28/A.N.Up.) के अनुसार इनका समय ई. 1185-1203 है परन्तु ऐसा मानने से ये न तो प्रभाचन्द्र नं. 4 (ई.950-1020) के सहधर्मा ठहरते है और न हि माघनन्दि कोल्हापुरीय (ई. 1108-1136) के दादा गुरु ही सिद्ध होते हैं।
- काष्ठा संघ की गुर्वावली के अनुसार आप हेमचन्द्र के शिष्य और यश:कीर्ति के गुरु थे। समय वि. 1005 (ईं. 948)। देखें - इतिहास /7/8)।
- नन्दिसंघ देशीयगण में वीरनन्दि के प्रशिष्य, बालनन्दि के शिष्य और प्रमेयकमल मार्त्तण्ड के कर्त्ता प्रभाचन्द्र नं. 4 के दीक्षा गुरु थे। माघनन्दि के प्रशिष्य श्री नन्दि के लिये आपने ‘जंबूदीव पण्णति’ की रचना की थी। कृतियें–जंबूदीव पण्णति, धम्म रसायण, प्राकृत पंच संग्रह की वृत्ति (संस्कृत टीका)। समय— लगभग ई0 977-1043। देखें - इतिहास /7/5) (जै0/2/84-85) ती0/3/110)।
- आ. वीर नन्दि के दीक्षा शिष्य और ज्ञानार्णव रचयिता शुभचन्द्र के शिक्षा शिष्य। कृतियें–पंचविंशतिका (संस्कृत) चरण सार (प्राकृत), धम्मरसायण (प्राकृत)।समय— वि0 श0 12. ई0 श0 11 का उत्तरार्ध। वि. 1238 तथा 1242 के शिला लेखों में आपका उल्लेख आता है। जै0/2/86/192) (ती0/3/125, 129)।
- त्रैविद्यदेव के शिष्य। समय–वि0 1373 में स्वर्गवास हुआ। अत: वि0 1315-1373 (ई0 1258-1316)। (पं. विं./प्र. 28/A.N.Up.) (जै./2/86)
- शुभ चन्द्र अध्यात्मिक के शिष्य। समय ई. 1293-1323।
- लघु पद्मनन्दि नाम के भट्टारक। कृतियें—निघण्टु वैद्यक श्रावकाचार: यत्याचार कलिकुण्ड पार्श्वनाथ विधान, देवपूजा, रत्नत्रय पूजा, अनन्त कथा, परमात्मप्रकाश की टीका। समय–वि0 1362 (ई0 1375)। जै0/2/86), (पं0 विं0/प्र028/A. N. Up.), पं0 का0 (प्र0 2/पं0 पन्ना लाल)।
- शुभ चन्द्र अध्यात्मी के शिष्य। शुभचन्द्र का स्वर्गवास वि. 1370 में हुआ।तदनुसार उनका समय–वि0 1350-1380 (ई. 1293-ई.1323)। पं. विं./प्र. 28।A.N.Up)।
- नन्दिसंघ बलात्कार गण की दिल्ली गद्दी की गुर्वावली के अनुसार आप प्रभाचन्द्रनं. 7 के शिष्य तथा देवेन्द्रकीर्ति व सकल कीर्ति के गुरु थे। ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे। गिरनार पर्वत पर इनका श्वेताम्बरों के साथ विवाद चला था जिसमें इन्होंने ब्राह्मीदेवी अथवा सरस्वती की मूर्ति को वाचाल कर दिया था (शुभचन्द्र कृत पाण्डव पुराण श्ल. 14 तथा शुभचन्द्र की गुर्वावली श्ल. 63)। रत्ननन्दि कृत उपदेश तरंगिनी पृ. 148)। कृतियें–जीरापल्ली पार्श्वनाथ स्तोत्र, भावना पद्धति, अनन्तव्रत कथा, वर्द्धमान चरित्र। समय–वि. 1450 में इन्होंने आदिनाथ भगवान की प्रतिमा स्थापित कराई थी। अत: वि. 1385-1450 (ई. 1328-1396)। जै./2/211)(ती./3/222)।