पात्रकेसरी: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(No difference)
|
Revision as of 19:20, 27 February 2015
- आप ब्राह्माण कुल से थे। न्यायशास्त्र में पारंगत थे। आचार्य विद्यानन्दि की भाँति आप भी समन्तभद्र रचित देवागमस्तोत्र सुनने से ही जैनानुयायी हो गये थे। आपने त्रिलक्षण कदर्थन, तथा जिनेन्द्रगुणस्तुति (पात्रकेसरी स्तोत्र) ये दो ग्रन्थ लिखे। समय-पूज्यपाद के उत्तरवर्ती और अकलंकदेव से पूर्ववर्ती हैं - ई.श. ६ ( देखें - इतिहास / ७ / १ ); (ती./२/२३८-२४०)।
- श्लोकवार्तिककार आ. विद्यानन्दि (ई.७७५-८४०) की उपाधि। (देखें - विद्यानन्दि )। (जैन हितैषी, पं. नाथूराम)।