स्यात्: Difference between revisions
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<li id="1"><span class="HindiText"><strong>स्यात् शब्द का लक्षण</strong></span> | |||
<p> | <p><span class="SanskritText">रा.वा./४/४२/१५/२५३/११ तेनेतरनिवृत्तिप्रसङ्गे तत्संभवप्रदर्शनार्थ: स्याच्छब्दप्रयोग:, स च लिङन्तप्रतिरूपको निपात:। तस्यानेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु संभवत्सु इह विवक्षावशात् अनेकान्तार्थो गृह्यते। ...अथवा, स्याच्छब्दोऽयमनेकान्तार्थस्य द्योतक:। द्योतकश्च वाचकप्रयोगसन्निधिमन्तरेणाभिप्रेतार्थावद्योतनाय नालमिति तद्द्योत्यधर्माधारार्थाभिधानायेतरपदप्रयोग: क्रियते। अथ केनोपात्तोऽनेकान्तार्थ: अनेन द्योत्यते। उक्तमेतत्-अभेदवृत्त्या अभेदोपचारेण वा प्रयुक्तशब्दवाच्यतामेवास्कन्दन्ति इतरे धर्मा इति।</span> = <span class="HindiText">इससे इतर धर्मों की निवृत्ति का प्रसंग होता है, अत: उन धर्मों का सद्भाव द्योतन करने के लिए 'स्यात्' शब्द का प्रयोग किया गया है। स्यात् शब्द लिङन्त प्रतिरूपक निपात है। इसके अनेकान्त विधि विचार आदि अनेक अर्थ हो सकते हैं। परन्तु विवक्षावश यहाँ अनेकान्त अर्थ लिया गया है।...अथवा स्यात् शब्द अनेकान्त का द्योतक होता है। जो द्योतक होता है वह किसी वाचक शब्द के द्वारा कहे गये अर्थ का ही द्योतन कर सकता है अत: उसके द्वारा प्रकाश्य धर्म की सूचना के लिए इतर शब्दों का प्रयोग किया गया है। प्रश्न-इसके द्वारा किस कारण से अनेकान्तार्थ का द्योतन होता है। उत्तर-यह बात पहले भी कही जा चुकी है कि अभेद वृत्ति वा अभेदोपचार के द्वारा प्रयुक्त शब्दों की वाच्यता ही इतने धर्मों का ग्रहण करती है। (स.भं.त./३१/१०)</span></p> | ||
<span class="SanskritText">रा.वा./४/४२/१५/२५३/११ तेनेतरनिवृत्तिप्रसङ्गे तत्संभवप्रदर्शनार्थ: स्याच्छब्दप्रयोग:, स च लिङन्तप्रतिरूपको निपात:। तस्यानेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु संभवत्सु इह विवक्षावशात् अनेकान्तार्थो गृह्यते। ...अथवा, स्याच्छब्दोऽयमनेकान्तार्थस्य द्योतक:। द्योतकश्च वाचकप्रयोगसन्निधिमन्तरेणाभिप्रेतार्थावद्योतनाय नालमिति तद्द्योत्यधर्माधारार्थाभिधानायेतरपदप्रयोग: क्रियते। अथ केनोपात्तोऽनेकान्तार्थ: अनेन द्योत्यते। उक्तमेतत्-अभेदवृत्त्या अभेदोपचारेण वा प्रयुक्तशब्दवाच्यतामेवास्कन्दन्ति इतरे धर्मा इति।</span> =<span class="HindiText">इससे इतर धर्मों की निवृत्ति का प्रसंग होता है, अत: उन धर्मों का सद्भाव द्योतन करने के लिए 'स्यात्' शब्द का प्रयोग किया गया है। स्यात् शब्द लिङन्त प्रतिरूपक निपात है। इसके अनेकान्त विधि विचार आदि अनेक अर्थ हो सकते हैं। परन्तु विवक्षावश यहाँ अनेकान्त अर्थ लिया गया है।...अथवा स्यात् शब्द अनेकान्त का द्योतक होता है। जो द्योतक होता है वह किसी वाचक शब्द के द्वारा कहे गये अर्थ का ही द्योतन कर सकता है अत: उसके द्वारा प्रकाश्य धर्म की सूचना के लिए इतर शब्दों का प्रयोग किया गया है। प्रश्न-इसके द्वारा किस कारण से अनेकान्तार्थ का द्योतन होता है। उत्तर-यह बात पहले भी कही जा चुकी है कि अभेद वृत्ति वा अभेदोपचार के द्वारा प्रयुक्त शब्दों की वाच्यता ही इतने धर्मों का ग्रहण करती है। (स.भं.त./३१/१०)</span></p> | <p><span class="SanskritText">श्लो.वा/२/१/६/५५/४५६/१ स्यादिति निपातोऽयमनेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु वर्तते।</span> = <span class="HindiText">स्यात् यह तिङतप्रतिरूपक निपात अनेकान्त, विधि, विचार, और विद्या आदि बहुत अर्थों में वर्त रहता है। (विशेष देखें - [[ स्याद्वाद#5.2 | स्याद्वाद / ५ / २ ]])।</span></p> | ||
<p> | <p><span class="SanskritText">अष्टसहस्री/टिप्पणी/पृ.२८६ विधि-आदिष्वर्थेषु अपि लिङ्लकारस्य स्यादिति क्रियारूपं पदं सिद्धयति। परन्तु नायं स शब्द: निपात इति विशेष्योक्तत्वात् ।</span> = <span class="HindiText">स्यात् शब्द विधि आदि अर्थों में लिङ् लकार की क्रिया रूप पद को सिद्ध करता है, परन्तु यह स्यात् शब्द निपात नहीं है। क्योंकि विशेषता पहले कह दी गयी है।</span></p> | ||
<span class="SanskritText">श्लो.वा/२/१/६/५५/४५६/१ स्यादिति निपातोऽयमनेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु वर्तते।</span>=<span class="HindiText">स्यात् यह तिङतप्रतिरूपक निपात अनेकान्त, विधि, विचार, और विद्या आदि बहुत अर्थों में वर्त रहता है। (विशेष देखें - [[ स्याद्वाद#5.2 | स्याद्वाद / ५ / २ ]])।</span></p> | </li> | ||
<p> | <li id="2"><strong class="HindiText">स्यात् नामक निपात शब्द द्योतक व वाचक दोनों है</strong> | ||
<span class="SanskritText">अष्टसहस्री/टिप्पणी/पृ.२८६ विधि-आदिष्वर्थेषु अपि लिङ्लकारस्य स्यादिति क्रियारूपं पदं सिद्धयति। परन्तु नायं स शब्द: निपात इति विशेष्योक्तत्वात् ।</span> =<span class="HindiText">स्यात् शब्द विधि आदि अर्थों में लिङ् लकार की क्रिया रूप पद को सिद्ध करता है, परन्तु यह स्यात् शब्द निपात नहीं है। क्योंकि विशेषता पहले कह दी गयी है।</span></p> | <p><span class="HindiText">आप्त. मी./भाषा/१/१४/२३ (सप्तभंगी) सत् आदि शब्द हैं ते तौ अनेकान्त के वाचक है और कंथचित् शब्द है सो अनेकान्त का द्योतक है। बहुरि इसकै आगै एवकार शब्द है सो अवधारण कहिये नियम कै अर्थि होइ है। बहुरि यह कथंचित् शब्द है सो याका पर्याय शब्द स्यात् है।</span></p> | ||
<p><span class="SanskritText">स.भं.त./२३/१ न च निपातानां द्योतकत्वादेवकारस्य वाचकत्वं न संभवतीति वाच्यम् । निपातानां द्योतकत्वपक्षस्य वाचकत्वपक्षस्य च शास्त्रे दर्शनात् । 'द्योतकाश्च भवन्ति निपाता:' इत्यत्र च शब्दाद्वाचकाश्च इति व्याख्यानात् ।</span> = <span class="HindiText">कदाचित् यह कहो कि निपातों को द्योतकता है नैकि वाचकता का सम्भव है। सो ऐसा नहीं है, क्योंकि निपातों का द्योतकत्व तथा वाचकत्व दोनों शास्त्रों में देखे गये हैं। 'द्योतकाश्च भवन्ति निपाता:' निपात द्योतक भी होते हैं इस वाक्य में च शब्द से वाचकता का भी व्याख्यान किया गया है।</span></p> | |||
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<p> | <li id="3"><strong class="HindiText">स्यात् शब्द की अर्थ विवक्षा</strong> | ||
<span class="HindiText">आप्त. मी./भाषा/१/१४/२३ (सप्तभंगी) सत् आदि शब्द हैं ते तौ अनेकान्त के वाचक है और कंथचित् शब्द है सो अनेकान्त का द्योतक है। बहुरि इसकै आगै एवकार शब्द है सो अवधारण कहिये नियम कै अर्थि होइ है। बहुरि यह कथंचित् शब्द है सो याका पर्याय शब्द स्यात् है।</span></p> | <p><span class="SanskritText">स.भं.त./३०/१ स्याच्छब्दस्य चानेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु संभवत्सु इह विवक्षावशादनेकान्तार्थो गृह्यते।</span> = <span class="HindiText">यद्यपि अनेकान्त, विधि, विचार आदि अनेक अर्थ स्यात्कार के सम्भव हैं तथापि यहाँ वक्ता की विशेष इच्छा से अनेकान्तार्थ वाचक ही स्यात्कार शब्द का ग्रहण है।</span></p> | ||
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<span class="SanskritText">स.भं.त./२३/१ न च निपातानां द्योतकत्वादेवकारस्य वाचकत्वं न संभवतीति वाच्यम् । निपातानां द्योतकत्वपक्षस्य वाचकत्वपक्षस्य च शास्त्रे दर्शनात् । 'द्योतकाश्च भवन्ति निपाता:' इत्यत्र च शब्दाद्वाचकाश्च इति व्याख्यानात् ।</span> =<span class="HindiText">कदाचित् यह कहो कि निपातों को द्योतकता है नैकि वाचकता का सम्भव है। सो ऐसा नहीं है, क्योंकि निपातों का द्योतकत्व तथा वाचकत्व दोनों शास्त्रों में देखे गये हैं। 'द्योतकाश्च भवन्ति निपाता:' निपात द्योतक भी होते हैं इस वाक्य में च शब्द से वाचकता का भी व्याख्यान किया गया है।</span></p> | <li id="4"><strong class="HindiText">स्यात् शब्द का अर्थ अनियमितता</strong> | ||
<p><span class="PrakritText">ध.१३/५,४,२६/७८/१० तम्हि चेव अत्थे गुणस्स पज्जायस्स वा संकमदि। पुव्विल्लजोगादो जोगंतरं पि सिया संकमदि।</span> = <span class="HindiText">(पृथक्त्व वितर्क विचार शुक्लध्यान अन्तर्मुहूर्त तक एक ही अर्थ को ध्याने के पश्चात्) अर्थान्तर पर नियम से संक्रामित होता है। और पूर्व योग से स्यात् (अनियमित रूप से) योगान्तर पर संक्रामित होता है।</span></p> | |||
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<span class="SanskritText">स.भं.त./३०/१ स्याच्छब्दस्य चानेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु संभवत्सु इह विवक्षावशादनेकान्तार्थो गृह्यते।</span> =<span class="HindiText">यद्यपि अनेकान्त, विधि, विचार आदि अनेक अर्थ स्यात्कार के सम्भव हैं तथापि यहाँ वक्ता की विशेष इच्छा से अनेकान्तार्थ वाचक ही स्यात्कार शब्द का ग्रहण है।</span></p> | <ul class="HindiText"> | ||
<li id=""><strong>स्यात् शब्द की प्रयोग विधि व उसका महत्त्व</strong>- देखें - [[ स्याद्वाद#4 | स्याद्वाद / ४ ]],५।</li> | |||
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<span class="PrakritText">ध.१३/५,४,२६/७८/१० तम्हि चेव अत्थे गुणस्स पज्जायस्स वा संकमदि। पुव्विल्लजोगादो जोगंतरं पि सिया संकमदि। | |||
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Revision as of 22:15, 27 February 2016
- स्यात् शब्द का लक्षण
रा.वा./४/४२/१५/२५३/११ तेनेतरनिवृत्तिप्रसङ्गे तत्संभवप्रदर्शनार्थ: स्याच्छब्दप्रयोग:, स च लिङन्तप्रतिरूपको निपात:। तस्यानेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु संभवत्सु इह विवक्षावशात् अनेकान्तार्थो गृह्यते। ...अथवा, स्याच्छब्दोऽयमनेकान्तार्थस्य द्योतक:। द्योतकश्च वाचकप्रयोगसन्निधिमन्तरेणाभिप्रेतार्थावद्योतनाय नालमिति तद्द्योत्यधर्माधारार्थाभिधानायेतरपदप्रयोग: क्रियते। अथ केनोपात्तोऽनेकान्तार्थ: अनेन द्योत्यते। उक्तमेतत्-अभेदवृत्त्या अभेदोपचारेण वा प्रयुक्तशब्दवाच्यतामेवास्कन्दन्ति इतरे धर्मा इति। = इससे इतर धर्मों की निवृत्ति का प्रसंग होता है, अत: उन धर्मों का सद्भाव द्योतन करने के लिए 'स्यात्' शब्द का प्रयोग किया गया है। स्यात् शब्द लिङन्त प्रतिरूपक निपात है। इसके अनेकान्त विधि विचार आदि अनेक अर्थ हो सकते हैं। परन्तु विवक्षावश यहाँ अनेकान्त अर्थ लिया गया है।...अथवा स्यात् शब्द अनेकान्त का द्योतक होता है। जो द्योतक होता है वह किसी वाचक शब्द के द्वारा कहे गये अर्थ का ही द्योतन कर सकता है अत: उसके द्वारा प्रकाश्य धर्म की सूचना के लिए इतर शब्दों का प्रयोग किया गया है। प्रश्न-इसके द्वारा किस कारण से अनेकान्तार्थ का द्योतन होता है। उत्तर-यह बात पहले भी कही जा चुकी है कि अभेद वृत्ति वा अभेदोपचार के द्वारा प्रयुक्त शब्दों की वाच्यता ही इतने धर्मों का ग्रहण करती है। (स.भं.त./३१/१०)
श्लो.वा/२/१/६/५५/४५६/१ स्यादिति निपातोऽयमनेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु वर्तते। = स्यात् यह तिङतप्रतिरूपक निपात अनेकान्त, विधि, विचार, और विद्या आदि बहुत अर्थों में वर्त रहता है। (विशेष देखें - स्याद्वाद / ५ / २ )।
अष्टसहस्री/टिप्पणी/पृ.२८६ विधि-आदिष्वर्थेषु अपि लिङ्लकारस्य स्यादिति क्रियारूपं पदं सिद्धयति। परन्तु नायं स शब्द: निपात इति विशेष्योक्तत्वात् । = स्यात् शब्द विधि आदि अर्थों में लिङ् लकार की क्रिया रूप पद को सिद्ध करता है, परन्तु यह स्यात् शब्द निपात नहीं है। क्योंकि विशेषता पहले कह दी गयी है।
- स्यात् नामक निपात शब्द द्योतक व वाचक दोनों है
आप्त. मी./भाषा/१/१४/२३ (सप्तभंगी) सत् आदि शब्द हैं ते तौ अनेकान्त के वाचक है और कंथचित् शब्द है सो अनेकान्त का द्योतक है। बहुरि इसकै आगै एवकार शब्द है सो अवधारण कहिये नियम कै अर्थि होइ है। बहुरि यह कथंचित् शब्द है सो याका पर्याय शब्द स्यात् है।
स.भं.त./२३/१ न च निपातानां द्योतकत्वादेवकारस्य वाचकत्वं न संभवतीति वाच्यम् । निपातानां द्योतकत्वपक्षस्य वाचकत्वपक्षस्य च शास्त्रे दर्शनात् । 'द्योतकाश्च भवन्ति निपाता:' इत्यत्र च शब्दाद्वाचकाश्च इति व्याख्यानात् । = कदाचित् यह कहो कि निपातों को द्योतकता है नैकि वाचकता का सम्भव है। सो ऐसा नहीं है, क्योंकि निपातों का द्योतकत्व तथा वाचकत्व दोनों शास्त्रों में देखे गये हैं। 'द्योतकाश्च भवन्ति निपाता:' निपात द्योतक भी होते हैं इस वाक्य में च शब्द से वाचकता का भी व्याख्यान किया गया है।
- स्यात् शब्द की अर्थ विवक्षा
स.भं.त./३०/१ स्याच्छब्दस्य चानेकान्तविधिविचारादिषु बहुष्वर्थेषु संभवत्सु इह विवक्षावशादनेकान्तार्थो गृह्यते। = यद्यपि अनेकान्त, विधि, विचार आदि अनेक अर्थ स्यात्कार के सम्भव हैं तथापि यहाँ वक्ता की विशेष इच्छा से अनेकान्तार्थ वाचक ही स्यात्कार शब्द का ग्रहण है।
- स्यात् शब्द का अर्थ अनियमितता
ध.१३/५,४,२६/७८/१० तम्हि चेव अत्थे गुणस्स पज्जायस्स वा संकमदि। पुव्विल्लजोगादो जोगंतरं पि सिया संकमदि। = (पृथक्त्व वितर्क विचार शुक्लध्यान अन्तर्मुहूर्त तक एक ही अर्थ को ध्याने के पश्चात्) अर्थान्तर पर नियम से संक्रामित होता है। और पूर्व योग से स्यात् (अनियमित रूप से) योगान्तर पर संक्रामित होता है।
- स्यात् शब्द की प्रयोग विधि व उसका महत्त्व- देखें - स्याद्वाद / ४ ,५।