दर्शनपाहुड गाथा 15: Difference between revisions
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आगे कहते हैं कि इस सम्यग्दर्शन से ही कल्याण-अकल्याण का निश्चय होता है -
सम्मत्तादो णाणं णाणादो सव्वभावउवलद्धी । उवलद्धपयत्थे पुण सेयासेयं वियाणेदि ।।१५।।
सम्यक्त्वात् ज्ञानं ज्ञानात् सर्वभावोपलब्धि: । उपलब्धपदार्थे पुन: श्रेयोsश्रेयो विजानाति ।।१५।।
सम्यक्त्व से हो ज्ञान सम्यक् ज्ञान से सब जानना । सब जानने से ज्ञान होता श्रेय अर अश्रेय का ।।१५।।
अर्थ - सम्यक्त्व से तो ज्ञान सम्यक् होता है तथा सम्यक्ज्ञान से सर्व पदार्थो की उपलब्धि अर्थात् प्राप्ति अर्थात् जानना होता है तथा पदार्थो की उपलब्धि होने से श्रेय अर्थात् कल्याण और अश्रेय अर्थात् अकल्याण इन दोनों को जाना जाता है ।
भावार्थ - सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान को मिथ्याज्ञान कहा है, इसलिए सम्यग्दर्शन होने पर ही सम्यग्ज्ञान होता है और सम्यग्ज्ञान से जीवादि पदार्थो का स्वरूप यथार्थ जाना जाता है तथा जब पदार्थो का यथार्थ स्वरूप जाना जाये तब भला-बुरा मार्ग जाना जाता है । इसप्रकार मार्ग के जानने में भी सम्यग्दर्शन ही प्रधान है ।।१५।।