भावपाहुड गाथा 73: Difference between revisions
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भावेण होइ णग्गो मिच्छत्ताई य दोस चइऊणं ।<br> | |||
पच्छा दव्वेण मुणी पयडदि लिंगं जिणाणाए ।।७३।।<br> | |||
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भावेन भवति नग्न: मिथ्यात्वादीन् च दोषान् त्यक्त्वा ।<br> | |||
पश्चात् द्रव्येण मुनि: प्रकटयति लिंगं जिनाज्ञया ।।७३।।<br> | |||
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मिथ्यात्व का परित्याग कर हो नग्न पहले भाव से ।<br> | |||
आज्ञा यही जिनदेव की फिर नग्न होवे द्रव्य से ।।७३।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> पहिले मिथ्यात्व आदि दोषों को छोड़कर और भाव से अंतरंग नग्न हो, एकरूप शुद्ध आत्मा का श्रद्धान ज्ञान आचरण करे, पीछे मुनि जिन आज्ञा से द्रव्य से बाह्यलिंग प्रकट करे, यह मार्ग है । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> भाव शुद्ध हुए बिना पहिले ही दिगम्बररूप धारण कर ले तो पीछे भाव बिगड़े तब भ्रष्ट हो जाय और भ्रष्ट होकर भी मुनि कहलाता रहे तो मार्ग की हँसी करावे, इसलिए जिन आज्ञा यही है कि भाव शुद्ध करके बाह्यमुनिपना प्रगट करो ।।७३।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:50, 14 December 2008
आगे कहते हैं कि पहिले मिथ्यात्व आदिक दोष छोड़कर भाव से नग्न हो, पीछे द्रव्यमुनि बने यह मार्ग है -
भावेण होइ णग्गो मिच्छत्ताई य दोस चइऊणं ।
पच्छा दव्वेण मुणी पयडदि लिंगं जिणाणाए ।।७३।।
भावेन भवति नग्न: मिथ्यात्वादीन् च दोषान् त्यक्त्वा ।
पश्चात् द्रव्येण मुनि: प्रकटयति लिंगं जिनाज्ञया ।।७३।।
मिथ्यात्व का परित्याग कर हो नग्न पहले भाव से ।
आज्ञा यही जिनदेव की फिर नग्न होवे द्रव्य से ।।७३।।
अर्थ - पहिले मिथ्यात्व आदि दोषों को छोड़कर और भाव से अंतरंग नग्न हो, एकरूप शुद्ध आत्मा का श्रद्धान ज्ञान आचरण करे, पीछे मुनि जिन आज्ञा से द्रव्य से बाह्यलिंग प्रकट करे, यह मार्ग है ।
भावार्थ - भाव शुद्ध हुए बिना पहिले ही दिगम्बररूप धारण कर ले तो पीछे भाव बिगड़े तब भ्रष्ट हो जाय और भ्रष्ट होकर भी मुनि कहलाता रहे तो मार्ग की हँसी करावे, इसलिए जिन आज्ञा यही है कि भाव शुद्ध करके बाह्यमुनिपना प्रगट करो ।।७३।।