शीलपाहुड गाथा 25: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: आगे कहते हैं कि कोई प्राणी शरीर के सब अवयव सुन्दर प्राप्त करता है तो भी स...) |
(No difference)
|
Latest revision as of 11:30, 4 January 2009
आगे कहते हैं कि कोई प्राणी शरीर के सब अवयव सुन्दर प्राप्त करता है तो भी सब अंगों में शील ही उत्तम है -
वट्टेसु य खंडेसु य भद्देसु य विसालेसु अंगेसु ।
अंगेसु य पप्पेसु य सव्वेसु य उत्तमं सीलं ।।२५।।
वृत्तेषु च खंडेषु च भद्रेषु च विशालेषु अंगेषु ।
अंगेषु च प्राप्तेषु च सर्वेषु च उत्तमं शीलं ।।२५।।
गोल हों गोलार्द्ध हों सुविशाल हों इस देह के ।
सब अंग किन्तु सभी में यह शील उत्तम अंग है ।।२५।।
अर्थ - प्राणी के देह में कई अंग तो वृत्त अर्थात् गोल सुघट प्रशंसायोग्य होते हैं, कई अंग खंड अर्थात् अर्द्ध गोल सदृश प्रशंसा योग्य होते हैं, कई अंग भद्र अर्थात् सरल सीधे प्रशंसा योग्य होते हैं और कई अंग विशाल अर्थात् विस्तीर्ण चौड़े प्रशंसा योग्य होते हैं, इसप्रकार सब ही अंग यथास्थान सुन्दर पाते हुए भी सब अंगों में यह शील नाम का अंग ही उत्तम है, यह न हो तो सब ही अंग शोभा नहीं पाते हैं, यह प्रसिद्ध है ।
भावार्थ - लोक में प्राणी सर्वांग सुन्दर हो, परन्तु दु:शील हो तो सब लोक द्वारा निंदा करने योग्य होता है, इसप्रकार लोक में भी शील ही की शोभा है तो मोक्ष में भी शील ही को प्रधान कहा है, जितने सम्यग्दर्शनादिक मोक्ष के अंग हैं, वे शील ही के परिवार हैं, ऐसा पहिले कह आये हैं ।।२५।।