योगसार - बन्ध-अधिकार गाथा 166: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: भोगता हुआ सम्यग्दृष्टि अबन्धक - <p class="SanskritGatha"> नीरागोsप्रासुकं द्रव्यं भुञ...) |
(No difference)
|
Latest revision as of 06:01, 21 January 2009
भोगता हुआ सम्यग्दृष्टि अबन्धक -
नीरागोsप्रासुकं द्रव्यं भुञ्जानोsपि न बध्यते ।
शङ्ख: किं जायते कृष्ण: कर्दादौ चरन्नपि ।।१६६।।
अन्वय :- कर्दादौ चरन् अपि शङ्ख: किं कृष्ण: जायते ? (न जायते; तथा एव) नीराग: (जीव:) अप्रासुकं द्रव्यं भुञ्जान: अपि न बध्यते ।
सरलार्थ :- जिसप्रकार कीचड आदि में विचरता/पडा हुआ भी शंख क्या काला हो जाता है? कदापि काला नहीं हो जाता, वह सफेद ही बना रहता है । उसीप्रकार जो कथंचित् वीतरागी हुआ श्रावक है, वह अप्रासुक पदार्थो का भोजन/सेवन करता हुआ भी मिथ्यात्वादि अनेक कर्म प्रकृतियों के बन्ध को प्राप्त नहीं होता ।