योगसार - संवर-अधिकार गाथा 214: Difference between revisions
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द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा फल भोगने की व्यवस्था -
य एव कुरुते कर्म किंचिज्जीव: शुभाशुभम् ।
स एव भजते तस्य द्रव्यार्थापेक्षया फलम् ।।२१४।।
अन्वय :- द्रव्यार्थ-अपेक्षया य: एव जीव: किंचित् शुभ-अशुभं कर्म कुरुते, स: एव (जीव:) तस्य फलं भजते ।
सरलार्थ :- द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से जो जीव जो कुछ शुभ-अशुभ कर्म करता है, वही जीव उसका फल भोगता है ।