योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 381: Difference between revisions
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मुक्तिमार्ग के नाशक जीव -
संज्ञानादिरुपायो यो निर्वृतेर्वर्णितो जिनै: ।
मलिनीकरणे तस्य प्रवर्तन्ते मलीमसा: ।।३८१।।
अन्वय :- निर्वृते: य: संज्ञानादि: उपाय: जिनै: वर्णित: (अस्ति), मलीमसा: तस्य मलिनीकरणे प्रवर्तन्ते ।।२५।।
सरलार्थ :- जिनेन्द्र देवों ने कहा हुआ मुक्ति के उपायभूत रत्नत्रयस्वरूप सम्यग्ज्ञानादि को मलिनचित्त जीव मलिन करने में प्रवृत्त होते हैं ।