योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 431: Difference between revisions
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उदाहरण सहित शास्त्र की उपयोगिता -
यथोदकेन वस्त्रस्य मलिनस्य विशोधनम् ।
रागादि-दोष-दुष्टस्य शास्त्रेण मनसस्तथा ।।४३१।।
अन्वय :- यथा मलिनस्य वस्त्रस्य उदकेन विशोधनं (भवति) । तथा रागादि-दोष-दुष्टस्य मनस: शास्त्रेण (विशोधनं )।
सरलार्थ :- जिसप्रकार मलिन वस्त्र जल से शुद्ध/पवित्र/निर्मल होता है, उसीप्रकार रागद्वेषाि द से दूषित साधक का मन शास्त्र के अध्ययनादि से निर्मल अर्थात् वीतरागरूप बन जाता है ।