योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 443: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: मोक्षमार्गारूढ़ जीवों का स्वरूप - <p class="SanskritGatha"> भावेषु कर्मजातेषु मनो येष...) |
(No difference)
|
Latest revision as of 22:19, 21 January 2009
मोक्षमार्गारूढ़ जीवों का स्वरूप -
भावेषु कर्मजातेषु मनो येषां निरुद्यमम् ।
भव-भोग-विरक्तास्ते भवातीताध्वगामिन: ।।४४३।।
अन्वय :- कर्मजातेषु भावेषु येषां मन: निरुद्यमं (अस्ति) । ते भव-भोग-विरक्ता: (साधव:) भवातीताध्वगामिन: (भवन्ति) ।
सरलार्थ :- कर्मोंदय से उत्पन्न परिणामों में तथा कर्मोंदय से प्राप्त संयोगी बाह्य पदार्थो में जिन साधक जीवों का मन उद्यम रहित है, वे भव एवं भोगों से विरक्त साधक जीव भवातीतमार्गगामी अर्थात् मोक्षमार्गी हो जाते हैं ।