योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 496: Difference between revisions
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कालुष्य और कर्म में निमित्त-नैमित्तिक संबंध -
कालुष्याभावतोsकर्म कालुष्यं कर्मत: पुन: ।
एकनाशे द्वयोर्नाश: स्याद् बीजाङ्कुरयोरिव ।।४९७।।
अन्वय : - कर्मत: कालुष्यं (उत्पद्यते), पुन: कालुष्य-अभावत: (च) अकर्म (भवति) । बीज-अङ्कुरयो: इव एकनाशे (सति) द्वयो: नाश: स्यात् ।
सरलार्थ :- मोहनीय कर्म के उदय के निमित्त से जीव में क्रोधादिरूप कलुषता की उत्पत्ति होती है और क्रोधादिरूप कलुषता के अभाव से ज्ञानावरणादि कर्म का अभाव होता है । बीज और अंकुर की तरह दोनों में से किसी एक का नाश होने पर दोनों का एकसाथ नाश हो जाता है ।