सेज्जाधर: Difference between revisions
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
1. भ.आ./वि./421/613/13 सेज्जाधरशब्देन त्रयो भण्यन्ते वसतिं य: करोति। कृतां वा वसतिं परेण भग्नां पतितैक देशां वा संस्करोति। यदि वा न करोति न संस्कारयति केवलं प्रयच्छत्यत्रास्वेति। = जो वसतिका को बनाता है वह, बनायी हुई वसतिका का संस्कार करने वाला अथवा गिरी हुई वसतिका को सुधारने वाला, किंवा उसका एक भाग गिर गया हो उसको सुधारने वाला वह एक, जो बनवाता नहीं है, और संस्कार भी नहीं करता है परन्तु यहाँ आप निवास करो ऐसा कहता है वह, ऐसे तीनों को सेज्जाधर कहते हैं। 2. सेज्जाधर के हाथ का आहार ग्रहण करने का निषेध-देखें भिक्षा - 3.2।