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<p> चक्रवर्ती अरनाथ और मल्लिनाथ के बीच हुए नवें चक्रवर्ती महापद्म के पूर्वभव का जीव । सुप्रभ मुनि का शिष्य होकर यह ब्रह्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह हस्तिनापुर नगर मे राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का महापद्म नामक पुत्र हुआ । यह नवा चक्रवर्ती था । इस पर्याय में इसकी आठ पुत्रियाँ हुई थी जिन्हें आठ विद्याधर हरकर ले गये थे । यह उन्हें यद्यपि वापिस ले आया था परंतु विरक्त होकर इन आठों ने दीक्षा धारण कर ली । वे विद्याधर भी दीक्षित हो गये थे । इस घटना से प्रतिबोध पाकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य सौंप दिया और विष्णु नामक इसके पुत्र के साथ दीक्षा धारण कर ली । अंत में केवलज्ञान प्राप्त करके यह संसार से मुक्त हो गया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 178-184 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> चक्रवर्ती अरनाथ और मल्लिनाथ के बीच हुए नवें चक्रवर्ती महापद्म के पूर्वभव का जीव । सुप्रभ मुनि का शिष्य होकर यह ब्रह्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह हस्तिनापुर नगर मे राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का महापद्म नामक पुत्र हुआ । यह नवा चक्रवर्ती था । इस पर्याय में इसकी आठ पुत्रियाँ हुई थी जिन्हें आठ विद्याधर हरकर ले गये थे । यह उन्हें यद्यपि वापिस ले आया था परंतु विरक्त होकर इन आठों ने दीक्षा धारण कर ली । वे विद्याधर भी दीक्षित हो गये थे । इस घटना से प्रतिबोध पाकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य सौंप दिया और विष्णु नामक इसके पुत्र के साथ दीक्षा धारण कर ली । अंत में केवलज्ञान प्राप्त करके यह संसार से मुक्त हो गया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 178-184 </span></p> | ||
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Revision as of 16:53, 14 November 2020
चक्रवर्ती अरनाथ और मल्लिनाथ के बीच हुए नवें चक्रवर्ती महापद्म के पूर्वभव का जीव । सुप्रभ मुनि का शिष्य होकर यह ब्रह्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह हस्तिनापुर नगर मे राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का महापद्म नामक पुत्र हुआ । यह नवा चक्रवर्ती था । इस पर्याय में इसकी आठ पुत्रियाँ हुई थी जिन्हें आठ विद्याधर हरकर ले गये थे । यह उन्हें यद्यपि वापिस ले आया था परंतु विरक्त होकर इन आठों ने दीक्षा धारण कर ली । वे विद्याधर भी दीक्षित हो गये थे । इस घटना से प्रतिबोध पाकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य सौंप दिया और विष्णु नामक इसके पुत्र के साथ दीक्षा धारण कर ली । अंत में केवलज्ञान प्राप्त करके यह संसार से मुक्त हो गया । पद्मपुराण 20. 178-184