शीलपाहुड़ देशभाषामय वचनिका प्रतिज्ञा: Difference between revisions
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दोहा
भव की प्रकृति निवारिकै, प्रगट किये निजभाव ।
ह्वै अरहन्त जु सिद्ध फुनि, वन्दूं तिनि धरि चाव ॥१॥
इसप्रकार इष्ट के नमस्काररूप मंगल करके शीलपाहुड नामक ग्रंथ श्रीकुन्दकुन्दाचार्य कृत प्राकृत गाथाबंध की देशभाषामय वचनिका का हिन्दी भाषानुवाद लिखते हैं ।