शीलपाहुड़ गाथा 7: Difference between revisions
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णाणं णाऊण णरा केई विसयाइभावसंसत्त ।
हिंडंति चादुरगदिं विसएसु विमोहिया मूढ़ा ॥७॥
ज्ञानं ज्ञात्वा नरा: केचित् विषयादिभावसंसक्ता: ।
हिण्डन्ते चतुर्गतिं विषयेषु विमोहितां मूढ़ा: ॥७॥
आगे कहते हैं कि यदि कोई ज्ञान को जानकर भी विषयासक्त रहते हैं वे संसार ही में भ्रमण करते हैं -
अर्थ - कई मूढ़ मोही पुरुष ज्ञान को जानकर भी विषयरूप भावों में आसक्त होते हुए चतुर्गतिरूप संसार में भ्रमण करते हैं, क्योंकि विषयों से विमोहित होने पर ये फिर भी जगत में प्राप्त होंगे इसमें भी विषय कषायों का ही संस्कार है ।
भावार्थ - ज्ञान प्राप्त करके विषय कषाय छोड़ना अच्छा है, नहीं तो ज्ञान भी अज्ञानतुल्य ही है ॥७॥