शीलपाहुड़ गाथा 8: Difference between revisions
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जे पुण विसयविरत्त णाणं णाऊण भावणासहिदा ।
छिंदंति चादुरगदिं तवगुणजुत्त ण संदेहो ॥८॥
ये पुन: विषयविरक्ता: ज्ञानं ज्ञात्वा भावनासहिता: ।
छिन्दन्ति चतुर्गतिं तपोगुणयुक्ता: न सन्देह: ॥८॥
आगे कहते हैं कि जब ज्ञान प्राप्त करके इसप्रकार करे तब संसार कटे -
अर्थ - जो ज्ञान को जानकर और विषयों से विरक्त होकर उस ज्ञान की बारबार अनुभवरूप भावनासहित होते हैं वे तप और गुण अर्थात् मूलगुण उत्तरगुणयुक्त होकर चतुर्गतिरूप संसार को छेदते हैं, काटते हैं, इसमें संदेह नहीं है ।
भावार्थ - ज्ञान प्राप्त करके विषय कषाय छोड़कर ज्ञान की भावना करे, मूलगुण उत्तरगुण ग्रहण करके तप करे वह संसार का अभाव करके मुक्तिरूप निर्मलदशा को प्राप्त होता है - यह शीलसहित ज्ञानरूप मार्ग है ।