शीलपाहुड़ गाथा 22: Difference between revisions
From जैनकोष
('<div class="PrakritGatha"><div>वारि एक्कम्मि य जम्मे मरिज्ज विसवेयणा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(No difference)
|
Latest revision as of 22:46, 2 November 2013
वारि एक्कम्मि य जम्मे मरिज्ज विसवेयणाहदो जीवो ।
विसयविसपरिहया णं भमंति संसारकंतारे ॥२२॥
वारे एकस्मिन् च जन्मनि गच्छेत् विषवेदनाहत: जीव: ।
विषयविषपरिहता भ्रमन्ति संसारकान्तारे ॥२२॥
आगे इसी का समर्थन करने के लिए विषयों के विष का तीव्रपना कहते हैं कि विष की वेदना से तो एकबार मरता है और विषयों से संसार में भ्रमण करता है -
अर्थ - विष की वेदना से नष्ट जीव तो एक जन्म में ही मरता है, परन्तु विषयरूप विष से नष्ट जीव अतिशयतया-बारबार संसाररूपी वन में भ्रमण करते हैं । (पुण्य की और राग की रुचि वही विषयबुद्धि है ।)
भावार्थ - अन्य सर्पादिक के विष से विषयों का विष प्रबल है, इनकी आसक्ति से ऐसा कर्मबंध होता है कि उससे बहुत जन्म मरण होते हैं ॥२२॥