गारव: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Revision as of 16:03, 22 November 2020
( भावपाहुड़ टीका/17/299/21 ) गारवं शब्दगारवर्द्धिगारवसातगारवभेदेन त्रिविधं। तत्र शब्दगारवं वर्णोच्चारगर्व:, ऋद्धिगारवं शिष्यपुस्तककमंडलुपिच्छपट्टादिभिरात्मोद्भावनं, सातगारवं भोजनपानादिसमुत्पन्नसौख्यलीलामदस्तैर्मोहमदगारवै:।=गारव तीन प्रकार का—शब्द गारव, ऋद्धिगारव और सात गारव। तहाँ वर्ण के उच्चारण का गर्व करना शब्द गारव है। शिष्य पुस्तक कमंडलु पिच्छी या पट्ट आदि द्वारा अपने को ऊँचा प्रगट करना ऋद्धि गारव है। भोजन पान आदि से उत्पन्न सुख की लीला से मस्त होकर मोहमद करना सात गारव है। ( मोक्षपाहुड़/ टी./27/322/1)।
2. न्याय विषयक गारव दोष—देखें अति प्रसंग ।
3. कायोत्सर्ग का अतिचार—देखें व्युत्सर्ग - 1।