शीलपाहुड - गाथा 11: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:57, 17 May 2021
णाणेण दंसणेण य तवेण चरिएण सम्मसहिएण ।
होहदि परिणिव्वाणं जीवाणं चरित्तसुद्धाणं ।।11।।
(21) सम्यक्त्वसहित ज्ञान दर्शन तप चारित्र से चारित्रशुद्धों का निर्वाण―निर्वाण कैसे प्राप्त होता है ? सिद्धभक्ति आदिक में और उसकी अंचलिका में बताया है कि अनेक तपसिद्ध हैं, ज्ञानसिद्ध हैं, संयमसिद्ध हैं, चारित्रसिद्ध हैं तो कहीं ऐसा नहीं है कि ज्ञानदर्शन आदिक तो है नहीं, केवल तप कर रहा और सिद्धि मिल गई । अलग-अलग धर्मों की मुख्यता से निर्वाण कहा है, पर वहाँ यह समझना कि सभी बातें सबके होती हैं, पर उनमें किसके कुछ मुख्य होती हैं । अंत में जाकर जहाँ अप्रमत्त दशा और श्रेणी होती है वहाँ एकसी दशा रह जाती है । जब तक यह प्रमाद है, व्यवहार है तब तक भिन्नता नजर आती है । किसी के तप की मुख्यता है, किसी के विनय की मुख्यता है । किसी के विशेष शोध की मुख्यता है, पर जहाँ अप्रमत्त हुआ, श्रेणी में आरूढ़ हुआ वहाँ फिर ये विभिन्नतायें नहीं रहती हैं । विभिन्नतायें तब भी चलती हैं, मगर सूक्ष्म हैं । अनिवृत्तिकरण गुणस्थान होते ही विभिन्नतायें खतम हो जाती हैं । सबका एकसा परिणाम चलता है । तो यहाँ यह समझना कि सम्यग्दर्शनसहित ज्ञान हो उससे निर्वाण है, सम्यक्त्वसहित दर्शन हो उससे निर्वाण है, सम्यक्त्वसहित चारित्र हो उससे निर्वाण है । यहाँ जो 5 बातें कही गई हैं सो निर्वाण पाने वाले के पांचों ही होती हैं । कहीं यह नहीं है कि कोई तीन से, कोई दो से निर्वाण पा ले, मगर वहाँ मुख्यता जिसके जैसी देखी जाती है उसकी रूढ़ि हो जाती है, पर सम्यक्त्व सबके साथ होना ही चाहिए । सम्यक्त्व तो होता है मार्गदर्शक और चारित्र होता है चालक । जैसे जहाजों के चलने में बड़े-बड़े समुद्रों में मार्गदर्शक चिन्ह लगे रहा करते हैं तो वे मार्गदर्शक चिन्ह जहाज को नहीं चला सकते, मगर मार्गदर्शक चिह्नों के अनुसार जहाज चलाया जाता है, तो ऐसे ही सम्यक्त्व तो है मार्गदर्शक और चारित्र है चालक, इतने पर भी चूंकि सम्यक्त्व भी आत्मा में अभेद है, चारित्र भी आत्मा में अभेद है, तो सम्यक्त्व में भी थोड़ा चालकपन बसा हुआ है और तब ही तो सम्यग्दर्शन के होते ही चारित्र चाहे अणु भी न हो तो भी उसे 41 प्रकृतियों का संवर रहता है । तो सम्यक्त्वसहित ज्ञान से, दर्शन से, तप से चारित्र से चारित्रशुद्ध जीवों का निर्वाण होता है । यहाँ दो बातें मुख्य आयी हैं―(1) सम्यक्त्वसहित और (2) चारित्र शुद्धि, ये सबमें होना चाहिए । अन्य बातों की मुख्यता और गौणता चलती है ।