अर्थ वाद: Difference between revisions
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<p> <span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/मूल/2/1/62, 64 </span><span class="PrakritText">विध्यर्थवादानुवादवचनविनियोगात्।62। स्तुतिर्निंदा परकृतिः पुरा-कल्प इत्यर्थवादः।64। </span>=<span class="HindiText"> ब्राह्मण ग्रंथों का तीन प्रकार से विनियोग होता है - विधिवाक्य, अर्थवाक्य, अनुवादवाक्य।62। '''अर्थवाद''' चार प्रकार का है - स्तुति, निंदा, परकृति और पुराकल्प (इनके लक्षणों के लिए देखें [[ | <p> <span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/मूल/2/1/62, 64 </span><span class="PrakritText">विध्यर्थवादानुवादवचनविनियोगात्।62। स्तुतिर्निंदा परकृतिः पुरा-कल्प इत्यर्थवादः।64। </span>=<span class="HindiText"> ब्राह्मण ग्रंथों का तीन प्रकार से विनियोग होता है - विधिवाक्य, अर्थवाक्य, अनुवादवाक्य।62। '''अर्थवाद''' चार प्रकार का है - स्तुति, निंदा, परकृति और पुराकल्प (इनके लक्षणों के लिए देखें [[ स्तुति ]]) ; [[ निंदा ]]; [[ परकृति ]]; [[ पुराकल्प ]] ।64। <br /> | ||
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Latest revision as of 12:38, 27 December 2022
न्यायदर्शन सूत्र/मूल/2/1/62, 64 विध्यर्थवादानुवादवचनविनियोगात्।62। स्तुतिर्निंदा परकृतिः पुरा-कल्प इत्यर्थवादः।64। = ब्राह्मण ग्रंथों का तीन प्रकार से विनियोग होता है - विधिवाक्य, अर्थवाक्य, अनुवादवाक्य।62। अर्थवाद चार प्रकार का है - स्तुति, निंदा, परकृति और पुराकल्प (इनके लक्षणों के लिए देखें स्तुति ) ; निंदा ; परकृति ; पुराकल्प ।64।
अधिक जानकारी के लिए देखें वाक्य