सुभूम: Difference between revisions
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<p id="1" class="HindiText"> (1) अवसर्पिणी के दु:षमा-सुषमा चौथे काल के शलाका-पुरुष एवं आठवें चक्रवती। ये तीर्थंकर अरनाथ और मल्लिनाथ के अंतराल में हुए थे। ये हस्तिनापुर के राजा कार्तवीर्य और उनकी रानी तारा के पुत्र थे। इनके पिता ने कामधेनु को पाने के लिए जमदग्नि तपस्वी को मार डाला था। इसके फलस्वरूप जमदग्नि के पुत्र परशुराम द्वारा इनके पिता भी मार डाले गये थे। तारा भयभीत होकर गुप्त रूप से कौशिक ऋषि के आश्रम में चली गयी थी। इनका जन्म आश्रम के एक तलघर में हुआ था। इनसे ये ‘‘सुभौम’’ नाम से प्रसिद्ध हुए। ये अपनी मां से पिता के मरण का रहस्य ज्ञात करके परशुराम की दानशाला में गये थे। वहाँ इन्होंने भोजन किया था। परशु ने इनकी थाली में दात परोसे थे। वे दाँत खीर में बदल गये थे। इस घटना से निमित्तज्ञानी के कथनानुसार परशुराम ने इन्हें अपना मारने वाला जानकर फरसा से मारना चाहा था किंतु उसी समय इनकी भोजन की थाली चक्र में बदल गई और इसी से इन्होंने परशुराम को ही मार डाला था। इसने चक्ररत्न से इक्कीस बार पृथिवी को बाह्मण रहित किया था। साठ हजार वर्ष इनकी आयु था। शरीर अट्ठाईस धनुष ऊँचा था। चौदह रत्न, नौ निधियां और मुकुटबद्ध बत्तीस हजार राजा इसकी सेवा करते थे। इसने मेघनाद को विद्याधरों का राजा बनाया था। आयु के अंत तक भी इन्हें तृप्ति नहीं हो पाई थी अतएव मरकर ये सातवें नरक गये। प्रथम पूर्वभव में ये महाशुक्र स्वर्ग में देव और दूसरे पूर्वभव में भरतक्षेत्र में भूपाल नामक राजा थे। इनका अपर नाम सुभौम था। <span class="GRef"> महापुराण 65.51-55, 131-150, 166-169, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#223|पद्मपुराण -5. 223]], 20.171-177, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_25#8|हरिवंशपुराण - 25.8-33]], 60.287, 295, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 110 </span></p> | |||
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(1) अवसर्पिणी के दु:षमा-सुषमा चौथे काल के शलाका-पुरुष एवं आठवें चक्रवती। ये तीर्थंकर अरनाथ और मल्लिनाथ के अंतराल में हुए थे। ये हस्तिनापुर के राजा कार्तवीर्य और उनकी रानी तारा के पुत्र थे। इनके पिता ने कामधेनु को पाने के लिए जमदग्नि तपस्वी को मार डाला था। इसके फलस्वरूप जमदग्नि के पुत्र परशुराम द्वारा इनके पिता भी मार डाले गये थे। तारा भयभीत होकर गुप्त रूप से कौशिक ऋषि के आश्रम में चली गयी थी। इनका जन्म आश्रम के एक तलघर में हुआ था। इनसे ये ‘‘सुभौम’’ नाम से प्रसिद्ध हुए। ये अपनी मां से पिता के मरण का रहस्य ज्ञात करके परशुराम की दानशाला में गये थे। वहाँ इन्होंने भोजन किया था। परशु ने इनकी थाली में दात परोसे थे। वे दाँत खीर में बदल गये थे। इस घटना से निमित्तज्ञानी के कथनानुसार परशुराम ने इन्हें अपना मारने वाला जानकर फरसा से मारना चाहा था किंतु उसी समय इनकी भोजन की थाली चक्र में बदल गई और इसी से इन्होंने परशुराम को ही मार डाला था। इसने चक्ररत्न से इक्कीस बार पृथिवी को बाह्मण रहित किया था। साठ हजार वर्ष इनकी आयु था। शरीर अट्ठाईस धनुष ऊँचा था। चौदह रत्न, नौ निधियां और मुकुटबद्ध बत्तीस हजार राजा इसकी सेवा करते थे। इसने मेघनाद को विद्याधरों का राजा बनाया था। आयु के अंत तक भी इन्हें तृप्ति नहीं हो पाई थी अतएव मरकर ये सातवें नरक गये। प्रथम पूर्वभव में ये महाशुक्र स्वर्ग में देव और दूसरे पूर्वभव में भरतक्षेत्र में भूपाल नामक राजा थे। इनका अपर नाम सुभौम था। महापुराण 65.51-55, 131-150, 166-169, पद्मपुराण -5. 223, 20.171-177, हरिवंशपुराण - 25.8-33, 60.287, 295, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 110
(2) तीर्थंकर अरनाथ के समवसरण का मुख्य प्रश्नकर्ता। महापुराण 76.532-533