संविति: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"> | <span class="GRef">नयचक्रवृहद् गाथा 350</span> <p class="PrakritText">लक्खणदो णियलक्खे अणुहवयाणस्स जं हवे सोक्खं। सा संवित्ती भणिया सयलवियप्पाण णिद्दहणा ॥350॥ </p> | ||
<p class="HindiText">= निजात्मा के लक्ष्य से सकल विकल्पों को दग्ध करने पर जो सौख्य होता है उसे '''संवित्ति''' कहते हैं।</p> | |||
[[ | <p class="HindiText"> अधिक जानकारी के लिये देखें [[ अनुभव#1.6 | अनुभव - 1.6]]।</p> | ||
[[Category:स]] | <noinclude> | ||
[[ संवाहिनी | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ संवित् | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: स]] | |||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Latest revision as of 21:03, 17 February 2024
नयचक्रवृहद् गाथा 350
लक्खणदो णियलक्खे अणुहवयाणस्स जं हवे सोक्खं। सा संवित्ती भणिया सयलवियप्पाण णिद्दहणा ॥350॥
= निजात्मा के लक्ष्य से सकल विकल्पों को दग्ध करने पर जो सौख्य होता है उसे संवित्ति कहते हैं।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनुभव - 1.6।