स्तेय: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(8 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
== सिद्धांतकोष से == | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<p> | <p> | ||
<span class=" | <span class="GRef"> तत्त्वार्थसूत्र/7/15 </span><span class="SanskritText">(प्रमत्तयोगात्) अदत्तादानं स्तेयम् ।15।</span></p> | ||
<p> | <p> | ||
<span class=" | <span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/7/15/352/12 </span><span class="SanskritText">आदानं ग्रहणमदत्तस्यादानमदत्तादानं स्तेय मित्युच्यते।...दानादाने यत्र संभवतस्तत्रैव स्तेयव्यवहार:।</span> = <span class="HindiText">बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय है।15। आदान शब्द का अर्थ ग्रहण है। बिना दी हुई वस्तु का लेना अदत्तादान है और यही स्तेय चोरी कहलाता है...जहाँ देना और लेना संभव हैं वहीं स्तेय का व्यवहार होता है। <span class="GRef">( राजवार्तिक/7/15/2/542/15 )</span> </span></p> | ||
<p> | <p> | ||
<span class="HindiText">स्तेय | <span class="HindiText">स्तेय संबंधी विषय-देखें [[ अस्तेय ]]।</span></p> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ स्तेनित | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ स्तेनित | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ स्तेयानंद | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
Line 17: | Line 18: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p> पाँच पापों में तीसरा पाप-चोरी । बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करना स्तेय (चोरी) है । यह प्रवृत्ति संक्लिष्ट परिणामों से होती है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.342, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.131 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> पाँच पापों में तीसरा पाप-चोरी । बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करना स्तेय (चोरी) है । यह प्रवृत्ति संक्लिष्ट परिणामों से होती है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#342|पद्मपुराण -5. 342]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#131|हरिवंशपुराण - 58.131]] </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
[[ स्तेनित | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ स्तेनित | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ स्तेयानंद | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: स]] | [[Category: स]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 10:07, 27 February 2024
सिद्धांतकोष से
तत्त्वार्थसूत्र/7/15 (प्रमत्तयोगात्) अदत्तादानं स्तेयम् ।15।
सर्वार्थसिद्धि/7/15/352/12 आदानं ग्रहणमदत्तस्यादानमदत्तादानं स्तेय मित्युच्यते।...दानादाने यत्र संभवतस्तत्रैव स्तेयव्यवहार:। = बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय है।15। आदान शब्द का अर्थ ग्रहण है। बिना दी हुई वस्तु का लेना अदत्तादान है और यही स्तेय चोरी कहलाता है...जहाँ देना और लेना संभव हैं वहीं स्तेय का व्यवहार होता है। ( राजवार्तिक/7/15/2/542/15 )
स्तेय संबंधी विषय-देखें अस्तेय ।
पुराणकोष से
पाँच पापों में तीसरा पाप-चोरी । बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण करना स्तेय (चोरी) है । यह प्रवृत्ति संक्लिष्ट परिणामों से होती है । पद्मपुराण -5. 342, हरिवंशपुराण - 58.131