अष्ट मंगल द्रव्य: Difference between revisions
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< | <span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/4/1879-1880 </span><span class="PrakritGatha">ते सव्वे उवयरणा घंटापहुदीओ तह य दिव्वाणिं। मंगलदव्वाणि पुढं जिणिंदपासेसु रेहंति।1879। भिंगारकलसदप्पणचामरधयवियणछत्तसुपयट्ठा। अट्ठुत्तरसयसंखा पत्तेकं मंगला तेसुं।1880। </span>= <span class="HindiText">घंटा प्रभृति वे सब उपकरण तथा दिव्य मंगल द्रव्य पृथक्-पृथक् जिनेंद्र प्रतिमाओं के पास में सुशोभित होते हैं।1879। भृंगार, कलश, दर्पण, चँवर, ध्वजा, बीजना, छत्र और सुप्रतिष्ठ – ये आठ मंगल द्रव्य हैं, इनमें से प्रत्येक वहाँ 108 होते हैं।1880।</span> </p> | ||
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Latest revision as of 14:11, 29 December 2022
तिलोयपण्णत्ति/4/1879-1880 ते सव्वे उवयरणा घंटापहुदीओ तह य दिव्वाणिं। मंगलदव्वाणि पुढं जिणिंदपासेसु रेहंति।1879। भिंगारकलसदप्पणचामरधयवियणछत्तसुपयट्ठा। अट्ठुत्तरसयसंखा पत्तेकं मंगला तेसुं।1880। = घंटा प्रभृति वे सब उपकरण तथा दिव्य मंगल द्रव्य पृथक्-पृथक् जिनेंद्र प्रतिमाओं के पास में सुशोभित होते हैं।1879। भृंगार, कलश, दर्पण, चँवर, ध्वजा, बीजना, छत्र और सुप्रतिष्ठ – ये आठ मंगल द्रव्य हैं, इनमें से प्रत्येक वहाँ 108 होते हैं।1880।
चैत्य चैत्यालयों के सम्बन्ध में विशेष जानकारी के लिए देखें चैत्य चैत्यालय - 1.11