त्रिभुवनानंद: Difference between revisions
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<p> विदेह क्षेत्र के पुंडरीक नगर का चक्रवर्ती सम्राट् । इसके बाईस हजार पुत्र थे और एक पुत्री अनंगशरा थी । अनंगजरा ने अपने ऊपर आयी हुई विपत्ति के कारण सल्लेखना धारण कर ली थी । उस अवस्था में वन में एक अजगर उसे खा रहा था । यह समाचार सुनकर जब यह वन में उसके पास पहुँचा तो उसे वैराग्य हो गया और अपने पुत्रों के साथ यह दीक्षित हो गया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 64. 50-51, 85-90 </span>देखें [[ अनंगशरा ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> विदेह क्षेत्र के पुंडरीक नगर का चक्रवर्ती सम्राट् । इसके बाईस हजार पुत्र थे और एक पुत्री अनंगशरा थी । अनंगजरा ने अपने ऊपर आयी हुई विपत्ति के कारण सल्लेखना धारण कर ली थी । उस अवस्था में वन में एक अजगर उसे खा रहा था । यह समाचार सुनकर जब यह वन में उसके पास पहुँचा तो उसे वैराग्य हो गया और अपने पुत्रों के साथ यह दीक्षित हो गया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_64#50|पद्मपुराण - 64.50-51]], 85-90 </span>देखें [[ अनंगशरा ]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
विदेह क्षेत्र के पुंडरीक नगर का चक्रवर्ती सम्राट् । इसके बाईस हजार पुत्र थे और एक पुत्री अनंगशरा थी । अनंगजरा ने अपने ऊपर आयी हुई विपत्ति के कारण सल्लेखना धारण कर ली थी । उस अवस्था में वन में एक अजगर उसे खा रहा था । यह समाचार सुनकर जब यह वन में उसके पास पहुँचा तो उसे वैराग्य हो गया और अपने पुत्रों के साथ यह दीक्षित हो गया । पद्मपुराण - 64.50-51, 85-90 देखें अनंगशरा