कायगुप्ति: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:45, 27 February 2023
सिद्धांतकोष से
ज्ञानार्णव/18 स्थिरीकृतशरीरस्य पर्यंकसंस्थितस्य वा। परीषहप्रपातेऽपि कायगुप्तिर्मता मुने:।18।=स्थिर किया है शरीर जिसने तथा परिषह आ जाने पर भी अपने पर्यंकासन से ही स्थिर रहे, किंतु डिगे नहीं, उस मुनि के ही कायगुप्ति मानी गयी है।18।
और देखें गुप्ति ।
पुराणकोष से
किसी के चित्र को देखकर मन में विकार का उत्पन्न न होना, शरीर की प्रवृत्ति को नियमित रखना । महापुराण 20.161, पांडवपुराण 9.90